सिमटते दायरे
मजहब और कौम के दायरे में
हम सिमट गए;
इन्सान की इंसानियत से
हम भटक गए.
जो गलियां-ओ-कूँचे रौशन थे
गुल्जरों से;
वो इन्सान की दरिंदगी से
वीरान हो गए.
जो कहते थे;
बहिश्त जमीं पे लायेंगे,
वो गैरों के टुकड़ों पे
नीलाम हो गए.
जो फूल खिले थे;
बहारों के साए तले,
वो खिजां में मुरझा के
दम तोड़ गए.
जो ख्वाब पाले थे
मासूमों की आँखों में;
वो आज दरिंदों के पैरों तले
कुचल गए.
जो अरमान मचले थे
किन्ही नूरानी आँखों में;
वो मजहब की कातिल दीवारों में
चिन गए.
जिंदगी के ख्वाब और अरमान
जब दफ्न हो गए;
सोचा:
क्या करे जीकर कोई...?
पर
जब हम ढूंढने निकले
तो
मौत के दाम मँहगे हो गए.
Comment
आदरणीया वीणा जी:
आज के सच को बयां करती हुई सटीक रचना की है आपने।
इस अभिव्यक्ति के लिए आपको हार्दिक बधाई।
आपकी यह रचना आज के माहौल में बहुत-कुछ सोचने को विवश करती है। बधाई, आदरणीया वीणा जी।
सादर,
विजय निकोर
//जो अरमान मचले थे
किन्ही नूरानी आँखों में;
वो मजहब की कातिल दीवारों में
चिन गए.
जिंदगी के ख्वाब और अरमान
जब दफ्न हो गए;
सोचा:
क्या करे जीकर कोई...?
पर
जब हम ढूंढने निकले
तो
मौत के दाम मँहगे हो गए.//
वीणा जी ! उपरवाले ने हम सभी में कोई भी भेदभाव नहीं किया पर धर्म मज़हब या कौम के दायरे में हमें यहीं पर बांटा गया है....इससे जनित त्रासदी का बेहतरीन चित्रण आपने अपनी उपरोक्त रचना में किया है ....साधुवाद !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online