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((( यूँ तो हूँ साधारण-सी इंसान बस... पर आजकल भावनाओं को शब्द देने आ गया है और लोग मुझे 'कवि' (कवयित्री) के नाम से पुकारने लगे हैं... पर अभी इस उपाधि से हमें नवाज़ा जाए ये हम सही नहीं समझते... अभी ऐसे किसी विषय पर लिखा नहीं... मैं अभी "कवि" नहीं...!! ये रचना बस यही सोचते सोचते बन पड़ी के मैं कवि क्यूँ नहीं और कब होउंगी...!! -जूली )))

मैं "कवि" 'नहीं' हूँ... ... ...
अगर मेरे शब्द पत्थर दिल न 'पिघलाए'...
अगर मेरे शब्द पर नम आँखें न 'मुस्काएं'...
अगर मेरे शब्द अनकही भावनाएं न 'समझाएं'...
अगर मेरे शब्द धूप में छाँव सा एहसास 'न कराए'...
मैं "कवि" 'नहीं' हूँ... ... ...
अगर मेरे शब्दों पर कोई वियोगिनी 'मुस्काए'...
अगर मेरे शब्दों पर बूढी आँखों की आस 'बुझ जाए'...
अगर मेरे शब्दों पर कोई वीर सीमा से 'लौट आए'...
अगर मेरे शब्दों पर भूखे पेट को दो रोटी 'याद आए'...
मैं "कवि" 'नहीं' हूँ... ... ...
अगर मेरे शब्द वैमनस्य को 'और बढ़ाएं'...
अगर मेरे शब्द अपने परायों में 'भेद बताए'...
अगर मेरे शब्द चिंगारी को 'आग बनाए'...
अगर मेरे शब्द हारे हुए को अँधेरे में 'धकेल आए'...
मैं 'कवि' "नहीं" हूँ... ... ...
मैं 'कवि' "नहीं" हूँ... ... ...!!

मैं "कवी" हूँ, 'तब'... ... ...
अगर मेरे शब्द सूनी आँखों में सपनें 'भर जाएँ'...
अगर मेरे शब्द बिछड़े अतीत की खुशबू 'लौटाए'...
अगर मेरे शब्द बंजर जमीं पर फूल 'खिलाए'...
अगर मेरे शब्द बिन घुंघरुओं की पायल 'छन्काए'...
मैं "कवी" हूँ, 'तब'... ... ...
अगर मेरे शब्दों से तपती धरा को बारिश की बूँद 'छू जाए'...
अगर मेरे शब्दों से दूरियों के फासलें दम 'तोड़ जाए'...
अगर मेरे शब्दों से जीवन की उलझती डोर का छोर 'मिल जाए'...
अगर मेरे शब्दों से निर्दोषों पर लगे कीचड़ के दाग 'धुल जाए'...
मैं "कवी" हूँ, 'तब'... ... ...
अगर मेरे शब्द नन्हें हाथों में चौका नहीं कलम 'थमाए'...
अगर मेरे शब्द वेद-कुरान के भेद नहीं ज्ञान 'समझाए'...
अगर मेरे शब्द झुर्रीदार हाथों का सहारा लाठी नहीं हाथ 'बनाए'...
अगर मेरे शब्द बेरोज़गार हाथों में हथकड़ी नहीं पुरस्कार 'सजाए'...
मैं 'कवी' हूँ, "तब"... ... ...
मैं 'कवी' हूँ, "तब"... ... ...!!


::::::::जूली मुलानी::::::::
::::::::Julie Mulani::::::::

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Comment by Julie on October 24, 2010 at 9:32pm
बहुत-बहुत शुक्रिया 'नविन जी'...!!
Comment by Julie on October 22, 2010 at 11:44am
वीरेंद्र जी... कवी तो गुणों की खान होता है... उनमें से ये तो कुछ भी नहीं... बस छोटी सी कोशिश की थी... आपको पसंद आई बहुत बहुत आभार...!! :-)
Comment by Veerendra Jain on October 21, 2010 at 11:39pm
Julie ji बहुत सुंदर कविता है, एक कवि में कौन से गुण होने चाहिए, इसकी सटीक रूपरेखा बना दी है आपने..बहुत बहुत बधाई..
Comment by Julie on October 21, 2010 at 10:17pm
हा हा हा... बागी जी सब आप लोगों की सांगत का असर है बस... बहुत बहुत शुक्रिया बधाई देनें का...!! :-)

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 21, 2010 at 9:45am
वो हो ! वाह जुली वाह, एक नया रंग दिखा आपके लेखन मे, आप ने जहा से subject उठाया है वहा तक सोचना सबके बस की बात नहीं ,
बहुत ही बेहतरीन कविता , सलाम करता हूँ इस सोच को , कवित्री वाले कीटाणु प्रवेश कर गये है आपमे, बधाई आपको , :-))

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