हुस्न का है गुलिस्ताँ इश्क की नज़र है ये,
दिलों को दिल से जोड़ता लखनऊ शहर है ये,
लोगों को पुकार कर जो कह रहा है प्यार कर,
हो दोस्ती का वास्ता तो अपनी जाँ निसार कर,
दिल के रिश्तों पर लगी विश्वास की मुहर है ये,
दिलों को दिल से जोड़ता लखनऊ शहर है ये,
अदब का दूजा नाम है, हसीन हर एक शाम है,
आदाब मुस्लिमों को हर एक हिन्दू को प्रणाम है,
धर्म कोई भी हो सबकी कर रहा क़दर है ये,
दिलों को दिल से जोड़ता लखनऊ शहर है ये,
नवाबों की निशानी है, आज़ादी की कहानी है,
यहाँ का स्वाद लाजवाब न जिसका कोई सानी है,
गोमती को गंगा जैसा पूजता नगर है ये,
दिलों को दिल से जोड़ता लखनऊ शहर है ये,
दिलों को दिल से जोड़ता लखनऊ शहर है ये,
Comment
प्रिय अनिल भाई, कल आप हमारे घर काव्य-गोष्ठी में आए, हमें बड़ा अच्छा लगा. इसी सूत्र को लेकर आज जब आपको ओ.बी.ओ. में ढूँढ़ा तो हम सबके लखनऊ शहर पर आपकी यह सुंदर रचना हाथ लगी. आगे जब भी मुलाक़ात होगी आपसे यह रचना सुनना चाहूंगा. हार्दिक बधाई.
भाई अनिल जी, नवाबों और तहजीब का शहर लखनऊ का बहुत ही सुन्दर शब्द चित्रण किया है, शानदार रचना बन पड़ी है, इस अभिव्यक्ति पर बहुत बहुत बधाई और दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार हो |
गोमती को गंगा जैसा पूजता नगर है ये,
दिलों को दिल से जोड़ता लखनऊ शहर है ये,------------ बहुत सुन्दर
लखनऊ शहर को प्रणाम और इसकी आबो हवा को बतलाने वाले समीर को बधाई
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