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जागो मेरे स्वामी जागो...

देवोत्थानी एकादशी के अवसर पर मेरे पूज्य पिताजी देवों को जगाया करते थे आज उनकी स्मृति को मन मे संजोए उनकी परंपरा का निर्वाह मै निम्न शब्दों से करता हुआ आप सबको देव- उठानी एकादशी की बधाई देता हूँ.



जागो मेरे स्वामी जागो...

तुम सोए तो सो जाती है...

इस जग की ममता अनजानी,

कहाँ... न जाने खो जाती है,

मेरी भी क्षमता अनचीन्ही..



तुम जागो तो विश्व जागेगा

मानवता..विश्वास जगेगा...

भेद भावना , कलुष मिटेगा

मन मे एक उपवन महकेगा..



तुम सोए तो...विधि पर भी

मधु-कैटभ भारी पड़ते हैं....

थोड़ी सी मोहलत पा कर

वे युगों आप से लड़ते हैं...



जागो तुम तो भाग्य जगेगा

मित्र भाव और प्रेम बढ़ेगा...

मन का भीति भाव भागेगा..


समरसता का युग जागेगा




जागो तुम कि जग जाए ये देश हमारा...

जागो तुम कि भाग जाए दुख संकट सारा..



जागो तुम कि नदियाँ रहें

हमेशा निर्मल...

बहता रहे अबाध...निरंतर

उनमे शुद्ध स्वच्छ पावन जल...



जागो तुम कि नर-नारी का औसत

कहीं बिगड़ ना जाए...

जागो तुम कि मातृ उदर मे

कन्या प्रीति सहित पल पाए....



जागो तुम कि जगे आस्था..

युगों पुरानी बचे व्यवस्था..

शिबि-दधीचि के भाव जगा कर

मन मंदिर मे प्रभु छा जाओ.



कहाँ सो रहे हो अब जागो..

जागो मेरे मालिक जागो..

बहुत सो लिए अब तो जागो

जागो मेरे स्वामी जागो.

......................................... डा. बृजेश कुमार त्रिपाठी

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Comment

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Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 17, 2010 at 2:20pm
नवीन जी , राणा प्रताप जी , और गणेश भैया आपको मेरी इस कविता में आनंद आया ..यही मेरा पुरुस्कार और लेखन की सफलता है

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 17, 2010 at 9:06am
ब्रिजेश भईया, अपने आप मे एक अलग तरह की रचना पढने को मिली , खुबसूरत काव्य कृति हेतु बधाई |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 15, 2010 at 2:16pm
देवोत्थानी एकादशी पर अति सुन्दर रचना...
भेद भावना तमस मिटेगा
समरसता अमृत बरसेगा|

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