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आदरणीय कुंती जी,सादर नमस्कार!
प्रेम तो जीवन का महत्वपूर्ण अंग है।इसके बिना जीवन नीरस है।प्रेम को परिभाषित करना अत्यंत कठिन कार्य है और मैंने तो बहुत छोटा- सा प्रयास किया है।मेरे प्रयास को सराहने हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
आदरणीय सौरभ जी,सादर नमस्कार !
आपके शब्द मेरा मार्गदर्शन करते हैं,आप सबकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का पूरा-पूरा प्रयास करूँगी और आशा है कि आप समय-समय पर ऐसे ही मेरा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
सावित्रीजी, इस भावोद्गार को क्या ही अच्छा होता कविता का सुगढ़ रूप दिया जाता है. यह सही है कि भावनाओं का संप्रेषण ही कविता है किन्तु यह संप्रेषण काव्यगत साधन चाहता है. कविता कैसी भी हो --अतुकांत या तुकांत-- विधाजन्य कसावट मांगती है.
बहरहाल इस प्रयास के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ.
सावित्री जी ,प्रेम का ये भी एक रूप है .माना कि वियोग में बहुत कष्ट्दायी होता है मगर
कालांतर में यही प्रेम एक सुखद स्मृति बनकर रह जाती है . सुंदर उदगार के लिये बधाई .
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