कह सकती हूँ अकेले ,
पर बाँट सकती हूँ,तुम्हारे संग |
मुस्करा सकती हूँ अकेले ,
पर हंस सकती हूँ तुम्हारे संग |
आनंद ले सकती हूँ अकेले ,
पर जश्न मना सकती हूँ तुम्हारे संग |
यही है सुन्दरता हमारे रिश्ते की |
हम एक दूसरे बिन कुछ भी नहीं | |
Comment
सभी आदरणीय जनों का हार्दिक आभार मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए ,post करते हुए डर रही थी ,यहाँ बहुत गुणीजन बैठे हैं पता नहीं कैसी प्रतिक्रिया आएगी परन्तु सब ने जो उत्साह बढाया है आगे कुछ भी रचना post करने में मेरा आत्मिक बल बढाएगा और मेरी लेखनी को प्रबल करने में सक्षम होगा ,तह दिल से सभी का शुक्रिया ,मार्गदर्शन करते रहें
सादर
सरिता भाटिया
आदरणीया सरिता जी:
आपकी यह अच्छी रचना न जाने कैसे पढ़ने से रह गई।
प्रत्येक पंक्ति में भाव मार्मिक हैं।
बधाई।
विजय निकोर
सुन्दर.......बधाई सरिता जी
छोटी सी मगर सुन्दर रचना आदरणीया सरिता भाटिया जी. सादर बधाई स्वीकारें.
बहुत सुन्दर हे
अच्छी है। बधाई!
गहन एवं सत्य प्रेम की एक अलग और अनोखी रचना, रूहानी प्रेम को बहुत ही सुन्दरता से परिभाषित किया है आपने, हार्दिक बधाई स्वीकारें.
चिराग जी तहेदिल से शुक्रिया
विजय मिश्र जी हार्दिक आभार
शुभाशीष शिरोमणि पाठक ,शुक्रिया
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