आओ प्रिये ! आओं
फिर रात ढली
फिर चाँद पुकारे
ज्यों रोशनी को
चिराग तरसे
त्यों तुम्हारी याद में
नैन बरसे।।
आओ प्रिये ! आओ
दिल की हर धड़कन
तुम्हें पुकारे ।।
तुम्हारी छुअन से मिलती
नई चेतना मुझको ।
नेह में डूबी हुई
नई प्रेरणा मुझको ।
वही चिर-परिचित सम्बल,
वही तुम्हारा अहसास,
और सम्वेदना
आज भी
दिल में महफूज है
आओ प्रिये ! आओ
मेरी सम्वेदना
तुम्है पुकारे ।।
शब्द सुगन्ध औ’ स्पर्श की
कल्पना में नहाई रोशनाई
और रात के धुंधलके में
चाँदनी की भाँति
प्रिये ! मुझे तुम्हारी जरूरत है
आओ प्रिये ! आओ
श्वासों का नेह-बन्धन
तुम्हें पुकारे ।।
आओ प्रिये! आओ.......।।
*********************
तरुण कु. सोनी तन्वीर
ईमेल - tarunksoni.tanveer@gmail.com
Comment
इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद, भाई.. .
थैंक्स प्रियंका जी
सुन्दर रचना ....बधाई सर
शुक्रिया अभिनव जी और कुन्ती जी, अपना आशीर्वाद बनाये रखे.
बहुत सुंदर रूमानी कविता ..रेगिस्तान में ठंडी छाँव की तरह.
सादर
कुंती.
श्री तरुण जी अच्छी रचना . भावों में ताजगी और अदायगी बेहतर ...
वही चिर-परिचित सम्बल,
वही तुम्हारा अहसास,
और सम्वेदना
आज भी
दिल में महफूज है
आओ प्रिये ! आओ
मेरी सम्वेदना
तुम्है पुकारे ।।
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