आदरणीय प्रबंधन टीम एवं सभी प्रबुद्ध सदस्यों को मेरा नमस्कार , अभी कुछ दिनों से ही मैं ओ बी ओ से जुड़ा हूँ अभी ज्यादा नही समझ पाया हूँ ! ऐसे ही कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ जो हमारे समाज के पाक्षिक अखबार में प्रकाशित हो जाता है और ना होता है तो अपने बनाये ब्लॉग पर लिख देता हूँ !
ओ बी ओ सदस्य बनने बाद लगता है मेरे जैसे नौसिखीये को यहाँ बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त हो सकेगा !
आशा ही नहीं विश्वास है आप मेरी त्रुटियों को माफ करते हुए मेरा उचित मार्ग दर्शन करेंगे ।
मैं अपनी पहली रचना के रूप में एक कविता यहाँ लिख रहा हूँ !
धन्यवाद
ऐसा मेरा मकसद नही !
आपसे बढ़ाई के दो बोल सुनु ,
ऐसी मेरी फितरत नही !
कोशिश मात्र इतनी है ,
मन के भाव बतला सकूं !
दिल में छिपा है क्या ,
आपको भी दिखला सकूं !!
एक क्षण ही सही,
आपकी चिंताएं मिटा सकूं !
पढ़कर आप मुस्कुराएं ,
तो पीठ अपनी थपथपा सकूं !!
दिल में छिपा है क्या , आपको भी दिखला सकूं !!
कुछ राहत मन को दिला सकूं !
चारों और खिंच गई ,
हर दीवार गिरा सकूं !
सालों से जमती रही ,
मन की गर्त हटा सकूं !!
दिल में छिपा है क्या , आपको भी दिखला सकूं !!
मस्ती में लहरा सकूं !
विदाई में तुम्हारे ,
हाथ मैं भी हिला सकूं !
सीने में क्या छिपा है ,
बिना चीरे ही दिखला सकूं !
दिल में छिपा है क्या , आपको भी दिखला सकूं !!
जीवन में लगी तमाम शर्तो को,
एक ही पल में हटा सकूं !
फिर से जीने के लिए,
नई बुनियाद बना सकूं !
अनजाने में बन गई ,
हर दूरी मिटा सकूं !
यादों में तुम्हारी खो, दो बोल गुनगुना सकूं !!
कोशिश मात्र इतनी है ,
दिल में छिपा है क्या , आपको भी दिखला सकूं !!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय माथुर जी बहुत सुन्दर कविता है आपकी। आपकी पहली रचना पढ़कर अच्छा लगा। आपको बधाई इस प्रयास पर!
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