For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

D P Mathur's Blog (8)

अभिव्यक्ति का एक प्रकार आलोचना

{सभी आदरणीय सजृनकर्ताओं को प्रणाम, एक माह तक भारतीय रेल सिगनल इंजीनियरी और दूरसंचार संस्थान , सिकन्दराबाद - आंध्र प्रदेश में नवीन तकनीकी ज्ञान अर्जन करने के कारण ओ बी ओ परिवार से दुर रहना पड़ा, इसके लिए क्षमा चाहता हूँ । पुनः प्रथम रचना के रूप में यह आलेख प्रस्तुत है}

         हमारे जीवनयापन की आवश्यकताओं के बाद सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता होती है हमारी अभिव्यक्ति अर्थात हमारी बोलने की जरूरत, जिसके बिना इंसान का जीवन कष्टमय हो जाता है । यदि किसी को कठोर सजा देनी होती है तो उसे…

Continue

Added by D P Mathur on September 30, 2013 at 8:30pm — 8 Comments

कुछ स्वतंत्र लाइनें

आगे बढ़ती भारत माँ के, पैरों में चुभ रहे काँटे !

आओ हम मिल कर उसके, एक एक दर्द को बाँटे !



समता, करूणा, वैभवशाली, भारत माँ की शान निराली !

धर्म ,प्रांत , जाति में बँटकर, हमने इसकी आभा बिगाड़ी !



जिस किसी ने भारत माँ पर, बुरी निगाह गड़ाई है ।

हमारे सपूतों ने हिम्मत से, उन्हें गर्त दिखाई है।



हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई, इन नामों को बदलो भाई।

हम सब तो बस बन्दे है, इस झंझट में क्यूं पड़ते हैं।



कोई ना रहेगा पराया तब, सब अपने बन जायेंगे…

Continue

Added by D P Mathur on August 14, 2013 at 12:00pm — 11 Comments

आलेख/ आधुनिकता बनाम पुश्तैनी

             इस आधुनिक और भागमभाग जिंदगी में यदि किसी चीज़ का अकाल पड़ा है तो वो समय है कोई किसी से बिना मतलब मिलना नहीं चाहता यदि आप किसी से मिलना चाहो तो उसके पास टाइम नही है। और मजबूरी वश या अनजाने में यदि मिलना भी पड़ जायें तो मात्र दिखावटी प्यार व चन्द रटी रटाई बातें करने के बाद मौका मिलते ही “आओ ना कभी ” कह कर बात खत्म करने की कोशिश की जाती है और सामने वाला भी तुरन्त आपकी मंशा समझ कर टाइम ही नही मिलता का नपा तुला जवाब देकर इतिश्री कर लेता है। लगता है जैसे एक…

Continue

Added by D P Mathur on August 3, 2013 at 9:23am — 13 Comments

तुम कुछ बोल दो

आज मन उदास है ,

तुम कुछ बोल दो !

अर्न्तमन की आँखों से मुस्कुरा,

प्रेम शब्द उकेर दो !

खिलते गुलाब की पंखुड़ी से,

गुलाबी अधर खोल दो !

आज मन उदास है , तुम कुछ बोल दो !

.

तुम्हारे स्वप्निल ख्यालों में ,

मन कहीं खो जाये !

तन स्पर्श ना सही ,

मन स्पर्श हो पायें !

स्वर कोकिला रूप में ,

श्वासों की सुगन्ध धोल दो !

आज मन उदास है तुम कुछ बोल दो !



प्रेम का मधुपान करूं ,

अपना सा अहसास करूं !

मोहपाश में बाँध कर ,…

Continue

Added by D P Mathur on July 12, 2013 at 7:30am — 10 Comments

पिता-मकसद

सघन वृक्ष सा विशाल अडिग,

तपन में शीतलता देता !

तुफानों से हर पल लड़ता ,

फिर भी सदा सहज वो दिखता !

अपनी इन्हीं बातो के कारण ,

वो एक पिता कहलाता !

.

कठोर सा यह दिखने वाला ,

दिल से कोमलता दिखलाता !

बेटी के दर्द से विचलित ,

डान्ट वरी माई डॉटर कहता !

पर उसकी विदाई पर वो ,

खुद को असहाय है पाता !

लाख चाहकर भी वो अपने,

अनवरत आँसू रोक ना पाता !

अपनी इन्हीं बातो के कारण ,

वो एक पिता कहलाता !

.

बात बात पर डाँट…

Continue

Added by D P Mathur on June 16, 2013 at 9:00am — 3 Comments

चाहत-मकसद

पिता हूँ , शायद कह ना पाऊँ, 

माँ सा प्यार ना दिखला पाऊँ !

चाहत है पर मन में इतनी,

प्यार में नम्बर दो कहलाऊँ !

जीवन की हर कठिन डगर में,

साथ खड़ा हो पाऊँ !

जब जब तुम्हें धूप सताये ,

छॉव मैं बन जाऊँ !

माँ तो नम्बर एक रहेगी ,

मैं , नम्बर दो कहलाऊँ !

.

समुंद्र भले ही कोई कहे ,

आँसुओं से बह जाऊँ !

तुम्हारी एक आह पर ,

विचलित मैं हो जाऊँ !

पत्थर हूँ ,

पर ,सुनकर दर्द तुम्हारे ,

मोम सा पिघल जाऊँ…

Continue

Added by D P Mathur on June 16, 2013 at 8:30am — 2 Comments

क्यूं

मुझे क्यूं लगता है , तुम्हे खो दुंगा ,

तुम्हें पा लिया है ,

ये भी तो मात्र एक भ्रम है !

जाने क्यूं लगता है ,रो दुंगा ,

ये भी तो मात्र एक भ्रम है !

नदी के किनारों सा,

साथ चलते चलते ,

क्यूं समझता हूँ ,मिलन होगा !

अनवरत साथ बह पा रहा हूँ ,

ये भी तो मात्र एक भ्रम है !

जाने क्यूं समझता हूँ ,

तुम, ये, वो सब मेरा है !

शाशवत सच ये कहता है ,

जो भोग लिया वो सपना है ! ,

जो उकेर दिया भाव ,वो अपना है !

प्रकृति का मात्र यही एक क्रम…

Continue

Added by D P Mathur on June 15, 2013 at 2:30pm — 6 Comments

मकसद

आदरणीय प्रबंधन टीम एवं सभी प्रबुद्ध सदस्यों को मेरा नमस्कार , अभी कुछ दिनों से ही मैं ओ बी ओ से जुड़ा हूँ अभी ज्यादा नही समझ पाया हूँ ! ऐसे ही कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ जो हमारे समाज के पाक्षिक अखबार में प्रकाशित हो जाता है और ना होता है तो अपने बनाये ब्लॉग पर लिख देता हूँ !

ओ बी ओ सदस्य बनने बाद लगता है मेरे जैसे नौसिखीये को यहाँ बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त हो सकेगा !

आशा ही नहीं विश्वास है आप मेरी त्रुटियों को माफ करते हुए मेरा उचित मार्ग दर्शन करेंगे ।

मैं अपनी पहली रचना के रूप…

Continue

Added by D P Mathur on June 7, 2013 at 9:00pm — 12 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
15 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
18 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service