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पिता हूँ , शायद कह ना पाऊँ, 

माँ सा प्यार ना दिखला पाऊँ !
चाहत है पर मन में इतनी,

प्यार में नम्बर दो कहलाऊँ !

जीवन की हर कठिन डगर में,

साथ खड़ा हो पाऊँ !
जब जब तुम्हें धूप सताये ,
छॉव मैं बन जाऊँ !
माँ तो नम्बर एक रहेगी ,
मैं , नम्बर दो कहलाऊँ !

.

समुंद्र भले ही कोई कहे ,

आँसुओं से बह जाऊँ !
तुम्हारी एक आह पर ,
विचलित मैं हो जाऊँ !
पत्थर हूँ ,
पर ,सुनकर दर्द तुम्हारे ,
मोम सा पिघल जाऊँ !
लड़ना पड़े चाहे तुफानों से ,
तुम्हें बचा ले जाऊँ !
चाहत है पर मन में इतनी,
प्यार में नम्बर दो कहलाऊँ !

           “ मौलिक एवं अप्रकाशित ”

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 16, 2013 at 7:42pm
आदरणीय..माथुर साहब ,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...हार्दिक शुभकामनाऐं
Comment by coontee mukerji on June 16, 2013 at 5:33pm

कितनी सच्चाई है इन पदों में ..........बहुत भावपूर्ण  रचना / सादर / कुंती.

कृपया ध्यान दे...

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