आज मन उदास है ,
तुम कुछ बोल दो !
अर्न्तमन की आँखों से मुस्कुरा,
प्रेम शब्द उकेर दो !
खिलते गुलाब की पंखुड़ी से,
गुलाबी अधर खोल दो !
आज मन उदास है , तुम कुछ बोल दो !
.
तुम्हारे स्वप्निल ख्यालों में ,
मन कहीं खो जाये !
तन स्पर्श ना सही ,
मन स्पर्श हो पायें !
स्वर कोकिला रूप में ,
श्वासों की सुगन्ध धोल दो !
आज मन उदास है तुम कुछ बोल दो !
प्रेम का मधुपान करूं ,
अपना सा अहसास करूं !
मोहपाश में बाँध कर ,
नजरों से इजहार करूं !
सर्द भरी इस रात में ,
प्यार की किरणें बिखेर दो !!
इठलाते हुए मुख खोल कर,
बातों की मिश्री घोल दो !
आज मन उदास है तुम कुछ बोल दो !
! मौलिक एवं अप्रकाशित !
Comment
आप सभी आदरणीय साहित्यविज्ञों को प्रणाम , मौसम कि रूस्वाई से नासार होने के कारण आभार व्यक्त करने में हुई देरी के लिए क्षमा मांगते हुए आप सभी का हृदय से धन्यवाद देता हूँ कृप्या आगे भी आप सभी को स्नेह इसी प्रकार बनाए रखिए !
आदरणीय बृजेश सर एवं आदरणीया वंदना जी आपके सुझाये अनुसार समझने की कौशिश करूँगा लेकिन क्या करना चाहिए यह मैं नही समझ पाया हूँ आदरणीय बृजेश सर यदि आप अपना मोबाईल नम्बर दे सकें तो आपसे बात करके कुछ मार्गदर्शन पा सकूँ
9001199809
waah waah aadarneey kya baat hai
प्रेम का मधुपान करूं ,
अपना सा अहसास करूं !
मोहपाश में बाँध कर ,
नजरों से इजहार करूं !
सर्द भरी इस रात में ,
प्यार की किरणें बिखेर दो !!
इठलाते हुए मुख खोल कर,
बातों की मिश्री घोल दो !
आज मन उदास है तुम कुछ बोल दो !
badhaai sweekaren
बहुत सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको इस प्रयास पर।
आदरणीय इस रचना को आपको मात्रा के आधार पर बांधने का प्रयास करना चाहिए था। इस बिन्दु पर आगे प्रयास करें। रचना की सुन्दरता बढ़ेगी।
सादर!
आ0 माथुर सर जी, वाह! अतिसुन्दर प्रस्तुति। बधाई स्वीकारें। सादर,
आदरणीय सुमित जी , राम शिरोमणी पाठक जी, लक्ष्मण प्रसाद जी, और विजय निकोर जी आपको कविता पसंद आने का मतलब शायद थोड़ा-2 मुझे लिखना आने लगा है आपके हौंसला बढ़ाने और टिप्पणी करने से प्रोत्साहन मिल जाता है आपका मार्ग दर्शन इसी प्रकार मिलता रहेगा ऐसी आशा के साथ आप सभी का आभार !
सुन्दर मार्मिक अभिव्यक्ति, आदरणीय। बधाई।
विजय
जब प्रेम भाव अभिव्यक्त होते है, तो कहते पत्थर भी बोल उठता है | फिर आपकी रचना के माध्यम से तो मिश्री घुल रही है
आदरनीय डी पी माथुर साहब | सुन्दर भाव रचना के लिए हार्दिक बधाई
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति आदरणीय माथुर जी //सादर
sunder rachna
अपना सा अहसास करूं !
मोहपाश में बाँध कर ,
नजरों से इजहार करूं !
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