माँ ने जो बेशुमार प्यार दिया,
पिता ने चुपचाप दुलार किया !
ऊँगली पकड़ जो चलना सिखाया,
तुतलाते बोलों ने अर्थ आपसे पाया !
पिता की डांट में छुपा था प्यार ,
जिसका न हो पाया कभी इजहार !
अन्दर से नरम और ऊपर से कठोर ,
अकेले बैठ हमेशा ही हुए भावविभोर !
बेटे बेटी का न कभी किया अंतर ,
चलते ही रहे बिना थके आप निरंतर !
माँ के माथे की बिंदिया का थे विश्वास ,
साथ हमेशा होने का दिलाया अहसास !
जब था अनजान सब दुनिया का नजारा ,
पिता के कन्धों पर बैठ देखा जग सारा !
जिंदगी के सफ़र का जब आपने विश्राम पाया ,
हमने कन्धों पर आपको मोक्षद्वार पहुँचाया !
पिता की छांव ने सिखाया खिलखिलाना ,
'सरिता' निरंतर बहना न व्यर्थ आँसू बहाना !!
.........................................
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
Shyam Narain Verma आदरणीय ह्रदय से आभारी हूँ
Shyam Narain Verma आदरणीय ह्रदय से आभारी हूँ
Pragya Srivastava जी शुक्रिया
Sumit Naithani आदरणीय ह्रदय से आभार स्वीकारें
Kewal Prasad जी बहुत बहुत शुक्रिया |
Abid ali mansoori आदरणीय तह दिल से शक्रिया
Jitendra Pastariya sir aapka hardik abhaar
आदरणीया सरिता जी पिता श्री को विनम्र श्रधांजलि एवं नमन, बहुत ही सुन्दर रचना रची हैं आपने हार्दिक बधाई स्वीकारें.
उम्दा रचना के लिए शुभकामनाऐं......................
सरिता जी ....................बधाई
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