ग़ज़ल
आवारगी के सफ़र में थके-टूटे ये बदन भी,
मंजिलें तो क्या मिलीं, खो गए मसकन भी। मसकन - रिहायाशें, वास
सूरज के माथे पे उभरी देखी एक शिकन भी,
सहरा में उतरे जब कुछ मोम के बदन भी। सहरा - रेगिस्तान
ज़िस्म के अंधे कुँयें से कायनात में निकल,
ज़ेहन नाम का रखा है इसमें एक रौज़न भी। रौज़न - रौशनदान
वो फ़कीर मुतमईन था एक रिदा ही पाकर,
दामन है, ओढ़न-बिछावन है और कफ़न भी। मुतमईन - सन्तुष्ट, रिदा - चादर
मैं जिंदगी को काँटों भरी ख़िज़ां कैसे कह दूँ,
मिस्ले-बहार कभी मिला था एक गुलबदन भी।
ख़्बाब नींदों की खुशलिबासी ही तो हैं प्यारे,
सुबह इन्हें उतार फैंक, हर रात ये पहन भी।
अपने लिये ढूँढ रहे थे नए अक्स, नये चेहरे,
परछाईयों के शह्र में गवां आये वो बदन भी।
हाथों के फ़ूल नहीं, छालों भरे तलवे भी देख,
मेरे सफ़र में आये हैं सहरा भी, चमन भी।
उसका किरदार यूं मेरे लम्हों पर हावी रहा,
मेरी बीवी मुझे लगी माँ भी कहीं बहन भी।
एक बार बेलिबास किया गया था शह्र में मुझे,
मेरा नंग ढंक न पाये फिर कभी पैराहन भी। पैराहन - वस्त्र
वक़्त ने हादसों के खंज़र जिधर भी फैंके,
कहीं रहा, ज़द में आ ही गया मेरा बदन भी।
कहीं अपनी हिज़रत उम्र भर की ना हो 'सानी'
दामन में ले ही चलो थोडी सी गर्दे-वतन भी। हिज़रत - परवास
मौलिक और अप्रकाशित , [ 'सानी' करतारपुरी ]
Comment
आदरणीय बृजेश जी, बेह्र, अरूज़ की बेइल्मी की बजह से बेह्र, अरूज़ के उस्तादों का हुआ तंज़ शायद आप नहीं समझे जोकि जायज़ भी है .. मुझे अपनी कम-इल्मी के लिए नमोशी है लेकिन अपने अशआर का फख्र है .. आपको ग़ज़ल पसंद आई, मुझे ख़ुशी है .. शुक्रिया
आदरणीय आपकी रचना को पसंद तो सबने किया है।
अशआर पसंद और नापसंद करने वाले सभी का शुक्रिया दोस्तों, दोनों ओर से मेरी होंसला-अफजाई हुई है ..
जनाब,
लहजा रवायती ग़ज़ल से वाबस्ता कर ही चुके हैं तो ग़ज़ल की रवायत को भी निभाया होता ...
बहर की नाजुक डोर हर मिसरे में अनमेल मोती पिरोये हुए है ...
ऐसा किया होता तो ग़ज़ल शायद पहले कहीं और पढ़ने को मिली होती ...
आदरणीय अच्छा प्रयास है। बधाई! यदि रचना के साथ बहर का भी जिक्र होता तो सबको आसानी होती।
सादर!
मैं जिंदगी को काँटों भरी ख़िज़ां कैसे कह दूँ,
मिस्ले-बहार कभी मिला था एक गुलबदन भी।
हाथों के फ़ूल नहीं, छालों भरे तलवे भी देख,
मेरे सफ़र में आये हैं सहरा भी, चमन भी।
उसका किरदार यूं मेरे लम्हों पर हावी रहा,
मेरी बीवी मुझे लगी माँ भी कहीं बहन भी।..........खूब बधाई......
sunder
आदरणीय जितेंदर जी, आपके शब्दों के लिए बहुत आभारी हूँ .. शुक्रिया
आदरणीया राज जी , हौंसला-अफजाई के लिए बहुत शुक्रिया .. आपकी दाद मेरा इनाम है…
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