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ग़ज़ल - हम और कोई निकले शिनाख्त में।

              ग़ज़ल 

 

आईनों से मिले थे बड़ी हसरत में,

हम और कोई निकले शिनाख्त में।

क्या आज फिर शह्र में लहू बरसा है?

अख़बार की सुर्खियाँ हैं दहशत में।

मुफ़लिसी क्या इतनी बुरी चीज़ है?            मुफ़लिसी - निर्धनता

आये हैं  दोस्त भी मुख़ालफ़त में।              मुख़ालफ़त - विरोध 

जल्द ही इमारती शह्र उग आएगा,

बो तो दिये गये हैं पत्थर दश्त में।             दश्त - जंगल 

उसे लगा आस्मां मुझे उड़ा ले जाएगा, 

वो नोच गया मेरे पर मुहब्बत में।

कहीं उफ़क से खेंच लायेंगे ये सूरज,           उफ़क - क्षितिज  

जुगनू उड़े हैं रात की सल्तनत में।

वो शख्स जो क़त्ल का गवाह था,

मुज़रिम ठहराया गया अदाळत में।

ऐसे ख़ुलूस से मिलूँगा मैं दुश्मन से,          ख़ुलूस - अपनत्व

वो मुहब्बत कर बैठेगा अदावत में।

मुश्किल से कुछ चिराग़ रौशन हुये थे,

तूफ़ान  चढ़  दौड़े  मुखालफत में।

ये दरिया खोद कर निकाले गये हैं,

सहरा मिला था हमें विरासत में।                सहरा - रेगिस्तान 

अपने शह्र के हादसात न पूछ 'सानी'

पथरा चली  हैं  ये आँखें हैरत में।

मौलिक और अप्रकाशित,

'सानी' करतारपुरी 

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Comment by ajay sharma on December 23, 2014 at 10:14pm

ये दरिया खोद कर निकाले गये हैं,

सहरा मिला था हमें विरासत में।     kya kahoo.....bahutkhoob

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