क्या सुनना है
क्या कहना है
जीना औ मरना है
क्या पाया है
जो खोना है
दिन ही बस गिनना है
सपने सारे
सूखा मारे
घिस घिस कर चलना है
देह को बस गलना है
मन से हारा
पर हूँ जीता
रो रो कर हॅंसना है
किसको रोएं
पीर सुनाएं
सबका ही कहना है
बस जीवन जीना है
खेत को सींचें
अंकुर फूटें
बस इंतजार करना है
रात हुई थी
सुबह भी होगी
सोए, अब जगना है
यह जीवन जीना है।
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया अन्नपूर्णा बहन आपका हार्दिक आभार! आप अवश्य प्रयास करिए। मैं भी चाहता हूं कि आप पद्य में भी गद्य की तरह सतत रचना करें।
सादर!
adarniy brejesh bhai ji , bahut hi badhiya navgeet likha hai apne , mai bhi prayas karungi .
आदरणीय रविकर जी आपका बहुत बहुत आभार!
सुन्दर भाव
आदरणीय-
शुभकामनायें -
जीना पर चढ़ते रहो, एक एक फुट रोज |
जीवन-वन का उच्चतम, तरुवर फल लो खोज ||
जीना=सीढ़ी
आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय निकोर साहब आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय राम भाई आपका हार्दिक आभार!
सुन्दर रचना के लिए अतिशय बधाई, आदरणीय।
सादर,
विजय निकोर
मन से हारा
पर हूँ जीता
रो रो कर हॅंसना है
किसको रोएं
पीर सुनाएं
सबका ही कहना है
बस जीवन जीना है////////सही कहा आपने
आदरणीय भाई ब्रिजेश जी बहुत सुन्दर चित्रण किया है आपने//////हार्दिक बधाई आपको
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