अनंत मनोभाव जब,
शब्द से क्यों मौन हो ?
तुम मेरी कौन हो ?
किंचित मुझे भी ज्ञान है,
किंचित जो तुमसे ज्ञात हो,
अनुत्तरित सा प्रश्न ये,
उत्तरित हो जाय, कि
आभास से समीपता,
पर दृष्टि से क्यों गौण हो ?
लगता मुझे कि ब्रह्म-सी,
नेत्र-शक्ति से परे,
अनुभवीय मात्र हो !
आत्मदर्शनीय, किन्तु
बाह्य हींन गात्र हो !
सत्य क्या ? पता नही,
किन्तु, कुछ अनुमान है –
जीव, जीवन में जो हैं,
तप्त, व्याकुल हो रहे,
उनको प्रदान शांतता
हेतु शीतल पौन हो !
सर्व की सर्वस्व तुम,
कैसे कहूँ कि कौन हो !
-पियुष द्विवेदी भारत
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
धन्यवाद, आदरणीय सरिता जी !
bahut hi badiya piyush bharat ,bahdai ho
God bless,keep it up
बहुत बहुत धन्यवाद, महिमा जी !
बहुत ही सुंदर ..शब्द और भाव का सुंदर समन्वय बधाई आपको
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