For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खुश्बू फ़िज़ा मे बिखरी

खुश्बू फ़िज़ा मे बिखरी 

=================

चेहरा तुम्हारा पढ़ लूँ

पल भर तो ठहर जाना 

नैनों की भाषा क्या है 

कुछ गुनगुना सुना-ना 

-------------------------

*आईना जरा मै देखूँ 
क्या मेरी छवि बसी है  

कोमल-कठोर बोल तू 
पलकें उठा , शरमा-ना

------------------------

आँखों मे आँखें डाले 

मै मूर्ति बन गया हूँ

पारस पारस सी हे री !

तू जान डाल जा ना

------------------------

खिलता गुलाब तू है 

कांटे भी तेरे संग हैं 

बिन खौफ मै ‘भ्रमर’ हूँ 

खिदमते-इश्क़ पेश आ ना 

------------------------------

खुश्बू फ़िज़ा मे बिखरी 

मदमस्त है पवन भी 

अल्हड नदी यूँ दामन- 

को छेड़ती तो न जा 

-------------------------

*अम्बर कसीदाकारी 
धरती पे छवि है न्यारी 
बदली है खोले घूँघट
लव खोल कुछ सुना-ना ..

-----------------------

सपने सुहाने दे के 

बिन रंगे चित्र ना जा 

ले जादुई नजर री !

परियों सी उड़ के ना जा 

---------------------------

"मौलिक व अप्रकाशित" 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'५

प्रतापगढ़

वर्तमान -कुल्लू हि . प्र.

09.10.2013

10.15-11.00 P.M.

*संशोधित 

Views: 818

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 20, 2013 at 10:45pm

आदरणीय बागी जी हार्दिक आभार सूचना हेतु ...लगता है इस बीच मैंने ध्यान नहीं दिया शायद पहले एडिट नहीं हो पाता था मेरे मन में था की पोस्ट करने के समय ही केवल एडिट हो सकता है ...

जय श्री राधे 
धन्यवाद


भ्रमर ५


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 19, 2013 at 10:47pm

//जल्दबाजी में कुछ त्रुटि रह गयी यहाँ एडिट होना भी मुश्किल रहता है//

आदरणीय भ्रमर जी, क्या आपके सिस्टम पर Option => Edit Post का बटन नहीं आ पता ? 
एडिट आप्शन सभी सदस्यों को प्रदान किया गया है, साथ ही एडमिन सदस्यों को आप मेल / कमेंट / चैट द्वारा भी एडिट हेतु कह सकते हैं, सादर सूचनार्थ । 
आपकी रचना आपकी टिप्पणी अनुसार एडिट की जा रही है । 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 19, 2013 at 10:16pm


प्रिय सुशील जी सभी मित्रों का आभार जिन्होंने अपना स्नेह और सुझाव् दिया ..ये रचना दैनिक जागरण में १ ४ अक्टूबर को प्रकाशित भी हुयी कानपुर रायबरेली संस्करण में ..सभी पाठकों का आभार

जल्दबाजी में कुछ त्रुटि रह गयी यहाँ एडिट होना भी मुश्किल रहता है आगे कोशिश होगी सुधार की कृपया निम्न को सुधारें यदि ठीक लगे तो संपादक महोदय से एडिट की ....

आईना जरा मै देखूँ
क्या मेरी छवि बसी है
कोमल-कठोर बोल तू
पलकें उठा , शरमा-ना

अम्बर कसीदाकारी
धरती पे छवि है न्यारी
बदली है खोले घूँघट
लव खोल कुछ सुना-ना ..

भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 19, 2013 at 10:12pm

आदरणीया गीतिका जी सभी मित्रों का आभार जिन्होंने अपना स्नेह और सुझाव् दिया ..ये रचना दैनिक जागरण में १ ४ अक्टूबर को प्रकाशित भी हुयी कानपुर रायबरेली संस्करण में ..सभी पाठकों का आभार

जल्दबाजी में कुछ त्रुटि रह गयी यहाँ एडिट होना भी मुश्किल रहता है आगे कोशिश होगी सुधार की कृपया निम्न को सुधारें यदि ठीक लगे तो संपादक महोदय से एडिट की ....

आईना जरा मै देखूँ
क्या मेरी छवि बसी है
कोमल-कठोर बोल तू
पलकें उठा , शरमा-ना

अम्बर कसीदाकारी
धरती पे छवि है न्यारी
बदली है खोले घूँघट
लव खोल कुछ सुना-ना ..

भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 19, 2013 at 10:11pm

आदरणीया महिमा श्री जी सभी मित्रों का आभार जिन्होंने अपना स्नेह और सुझाव् दिया ..ये रचना दैनिक जागरण में १ ४ अक्टूबर को प्रकाशित भी हुयी कानपुर रायबरेली संस्करण में ..सभी पाठकों का आभार

जल्दबाजी में कुछ त्रुटि रह गयी यहाँ एडिट होना भी मुश्किल रहता है आगे कोशिश होगी सुधार की कृपया निम्न को सुधारें यदि ठीक लगे तो संपादक महोदय से एडिट की ....

आईना जरा मै देखूँ
क्या मेरी छवि बसी है
कोमल-कठोर बोल तू
पलकें उठा , शरमा-ना

अम्बर कसीदाकारी
धरती पे छवि है न्यारी
बदली है खोले घूँघट
लव खोल कुछ सुना-ना ..

भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 19, 2013 at 9:54pm

आदरणीया मीना जी ...जय श्री राधे ...प्रोत्साहन हेतु आभार स्वागत है आप का ..रचना अच्छी लगी सुन हर्ष हुआ लिखना सार्थक रहा

 रचना दैनिक जागरण में १ ४ अक्टूबर को प्रकाशित भी हुयी कानपुर रायबरेली संस्करण में ..सभी पाठकों का आभार

अम्बर कसीदाकारी
धरती पे छवि है न्यारी
बदली है खोले घूँघट
लव खोल कुछ सुना ना ..

भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 19, 2013 at 9:49pm

प्रिय अनंत जी सभी मित्रों का आभार जिन्होंने अपना स्नेह और सुझाव् दिया ..ये रचना दैनिक जागरण में १ ४ अक्टूबर को प्रकाशित भी हुयी कानपुर रायबरेली संस्करण में ..सभी पाठकों का आभार

जल्दबाजी में कुछ त्रुटि रह गयी यहाँ एडिट होना भी मुश्किल रहता है आगे कोशिश होगी सुधार की कृपया निम्न को सुधारें यदि ठीक लगे तो संपादक महोदय से एडिट की ....

अम्बर कसीदाकारी
धरती पे छवि है न्यारी
बदली है खोले घूँघट
लव खोल कुछ सुना ना ..

भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 19, 2013 at 9:42pm

प्रिय डॉ आशुतोष जी ...जय श्री राधे ...प्रोत्साहन हेतु आभार स्वागत है आप का ..रचना अच्छी लगी सुन हर्ष हुआ लिखना सार्थक रहा

भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 19, 2013 at 9:41pm

प्रिय गीत जी ...जय श्री राधे ...प्रोत्साहन हेतु आभार स्वागत है आप का ..रचना अच्छी लगी सुन हर्ष हुआ

जल्दबाजी में कुछ त्रुटी रह गयी यहाँ एडिट होना भी मुश्किल रहता है आगे कोशिश होगी सुधार की


भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 19, 2013 at 9:40pm

प्रिय श्याम नारायण जी ...जय श्री राधे ...प्रोत्साहन हेतु आभार स्वागत है आप का

भ्रमर ५

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
5 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service