कभी कभी आधी बात सुनाने के बाद वही स्थिति हो जाती हैं , जो गुरु द्रोणाचार्य की हुई थी , उन्होंने सुना अश्वस्थामा मारा गया बाकि शब्द शंख के आवाज में दब गए , और वह समझे उनका बेटा मारा गया और इसी अघात में वह भी मारे गए , आजकल ऐसा ही हो रहा हैं लोग बाग पूरे शब्द को सुन नही रहे और आधे पे अर्थ को अनर्थ बना दे रहे हैं !
एक माँ बाप की एक ही लड़की थी , उसकी माँ औलाद (लड़का) नहीं होने के कारण रो रही थी और बेटी उसे सांत्वना दे रही थी , माँ मैं दुनिया की उस सोच को ख़त्म कर दूंगी की लड़का ही माँ बाप को संभल सकता हैं , मैं इस सोच को ( इसके आगे वो कुछ कहती तभी वह से एक महाशय गुजर रहे थे ओ रुक गए और उनके कानो में ये शब्द गए ) गिरा दूंगी , माँ रोती हुई बोली बेटी तू ठीक कह रही हैं मगर समाज क्या कहेगा , तो बोली मैं समाज की प्रवाह नहीं करती , वो आदमी बाहर जाकर लोगो में यह अफवाह फैला दी कि फलाने की लड़की गलत संगत में पड़ गई हैं , और ये बात जंगल की आग की तरह फ़ैल गई , और सब लोग वहा एकत्रित होने लगे और उस लड़की पे लांछन लगाने लगे , और वो अपनी माँ की दिए हुए बचन के अनुसार दुनिया का सामना किया और सच्चाई सामने आई तथा उस महाशय ने सबके सामने क्षमा मांगी और कहा आगे से मैं अधूरी बातो को कही भी नही रही रखूँगा !
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