For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक थैली बूंदी... 

              - शमशाद इलाही अंसारी "शम्स"

 

पता नहीं मुझे आज

एक थैली बूंदी की याद

इतनी क्यों आ रही है..?

आज के दिन..

जब स्कूल में

बंटा करती थी..

तमाम उबाऊ क्रिया कलापों 

और न्यूनतम स्तर के

पाखण्डों के बाद

बस प्रतीक्षा रहती थी

कब मिलेंगी

वो, गर्म गर्म बूंदियों की

रस भरी थैलियां

जो, न जाने कब और कैसे

जुड़ गयी थी

गणतंत्र दिवस से.

उन्हें लेकर मैं घर तक जाता

हर वर्ष, खुशी खुशी.

लेकिन..

जब से मैं व्यस्क हुआ हूँ

न मुझे उस थैली का इंतज़ार रहता

और, न रहता किसी के

कथित

गणतंत्र का.

शायद, आरोपित पर्व

वह कच्चे धब्बे मात्र हैं

जिन्हें, बरसात की

पहली ब्यार

धोकर, दिखा देती है

नाली का रास्ता.

-------------------------------------

Views: 542

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on January 31, 2011 at 7:08pm

Naveen Ji, main aapka dhyan akrasht kar sak, yahi badi baat hai...

Saadar.

Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on January 28, 2011 at 5:43pm

Bhai Virendra ji... aapki tawajjo mili iske liye behud shukr gujar hun..prem banai rakhiyegga..

saadar

Comment by Veerendra Jain on January 28, 2011 at 11:15am
शम्स साहब... बहुत ही उम्दा रचना... बचपन की वो स्कूल ड्रेस जो मैली हो गयी थी, फिर से धुल गयी... बहुत बहुत बधाई..
Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on January 28, 2011 at 2:00am

Kesari Ji...aapko kavita pasand aayi, iske liye main shukrgujar hun..

Sadar

Comment by वीनस केसरी on January 28, 2011 at 1:51am

शायद, आरोपित पर्व,,,...

 

इस पंक्ति ने आपकी कविता के भाव को व्यग्तिगत से कहीं ऊपर उठा दिया 

 

कविता का अंत खास पसंद आया  

 

 

Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on January 26, 2011 at 8:53pm
क्या बात है..गणेश जी..दूसरों के सिर के ऊपर से मेरी गुल्ली जब गुज़रती थी तब उसकी साय साय की आवाज़ से दहशत होती थी और वह उसकी आँखों से ब्यान होती थी मानो कह रहा हो...कि बच्चू आज बाल बाल बच गया, अगर लगती तो टीक खुल जाती....हा, हा...याद है, हम भी खूब खेले, घर वालों से छुप छुपा कर..
बाद वाली पंक्तियां लेखक का प्रतिरोध है, अस्वीकार्यता का.. मेरा सरोकार कुछ ऐसे स्वत्रंतता सैनानियों से रहे हैं जिन्होंने न पेंशन ली और न किसी कथित सरकारी गणतंत्र समारोह में हिस्सा लिया..वो कहते थे..यह वो आज़ादी नही जिसके लिये हम जेल गये, या भगत सिंह ने जिसके लिये कुर्बानी दी...इशारा समझ गये होंगे..!!
सादर

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 26, 2011 at 8:34pm

शम्स साहब , बहुत दिनों बाद OBO पर आपकी वापसी सुखद है , कविता मे शुरू मे कहे गये तथ्य अच्छे लगे , मुझे भी यह इन्तजार रहता था कि कब प्रधानाचार्य का अंतिम भाषण ख़त्म हो और मिठाई खाकर स्कूल के मैदान मे ही गुल्ली डंडा खेले, गुल्ली डंडा स्कूल मे ही छुपा कर रखा जाता था | 

किन्तु कविता कि अंतिम कुछ लाइनों का भाव बहुत प्रयत्न पर भी सर के ऊपर से गुल्ली कि भाति ही  निकल गया | गणतंत्र दिवस कि बधाई आपको |

Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on January 26, 2011 at 8:28pm

Abhinav ji...aapka abhivadan karta hun...Kutch yaad dilaney mein kaamyaabi to mili..!!!

Sadar

Comment by Abhinav Arun on January 26, 2011 at 8:06pm
bahud khoob शमशाद इलाही अंसारी "शम्स" जी आपने बचपन की याद दिला दी सच कहा अब वो पहले सी बात कहाँ !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service