बह्र-ए- खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22
इश्क में डूब इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,
भा गई सादगी अदा हमको,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,
वश में पागल ये दिल नहीं अब तो,
धडकनें छेड़ बेलगाँ कर ली,
पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,
नाम बदनाम हो न महफ़िल में,
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया वंदना जी आपने उचित प्रश्न उठायें हैं. अनुस्वार और अनुनासिक के बारे में जो जानकारी आपने दी है वह मैं इसी मंच पर पढ़ चुका हूँ. एक प्रयोग के तौर पर मैंने इन शब्दों प्रयोग किया है, गुरुजनों की प्रतीक्षा है मार्गदर्शन अवश्य करेंगे.
हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज सर स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
भाई अजय कुमार शर्मा जी सुधार आपके और मेरे अनुसार तो ठीक है किन्तु आपने तो बेबह्र सुधार बताये हैं भाई, मतला आपने बेबह्र कर दिया और दूसरा शेर आपके सुधार के अनुरूप तदाबुले रदीफ़ का दोष उत्पन्न हो गया. क्या आपके द्वारा किया गया सुधार ठीक है आप ही देख लें. सादर
हार्दिक आभार आदरणीय सारथी भाई जी स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सर, आमोद भाई जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जीतेंद्र भाई
हार्दिक आभार आदरणीया कुंती मुखर्जी जी
पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,...... बहुत शानदार आदरणीय अरुण जी
कुछ बातें साझा करना चाहूँगी जो अब तक मैनें जानी हैं
यहाँ लिए गए काफिये - जो संभवत: इस प्रकार हैं -
काफिया - मूल शब्द - लिखा जा सकता है
इन्तहाँ - इन्तहा -देखा गया है कि इन्तहां भी लिखा गया (यह सही है या नहीं, पता नहीं )
जाँ - जान - जां
हाँ-हाँ
बेलगाँ- शायद आपने बेलगाम को इस रूप में लिखा है
जवाँ- जवान -जवां
बेजबाँ- बेजबान (बेजुबान) - बेजुबां / बेजबां
हिंदी में हम पढ़ते हैं अनुस्वार और अनुनासिक :- स्वर के बाद बोला जाने वाला हलंत (अर्ध ध्वनि) अनुस्वार कहलाता है जिसका उच्चारण अनुनासिक वर्णानुसार किया जाता है ! इसका चिन्ह वर्ण के ऊपर बिंदी (ं) होता है जैसे बिंदी असल में बिन्दी है इसका प्रयोग इस स्थिति में होता है कि जिस अक्षर पर अनुस्वार (ं) का प्रयोग होता है उसका अगला अक्षर जिस वर्ण समूह से है यह उसी से सम्बन्धित होता है जैसे बिंदी में द से सम्बन्धित पंचम वर्ण है न और पंचांग में च और ग अक्षर से पहले (ं) हैं तो शुद्ध रूप है पञ्चाङ्ग
चंद्रबिंदु अनुनासिक स्वर हैं और अनुस्वार अनुनासिक व्यंजन हैं चन्द्र बिंदु के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग नहीं होता केवल इ ई ए ऐ ओ औ की मात्राओंको छोड़ कर जैसे हैं और में यहाँ बिंदी चंद्रबिंदु को प्रकट करती है यानि हँस और हंस में अंतर है अर्थ के तौर पर भी
यही बात यहाँ भी लागू है हाँ का मेल जबां , जवां के साथ नहीं होना चाहिए और उर्दू में भी न का लोप तो बिंदी के रूप में होता है जैसे जबां इम्तेहां पर बेलगाम के म को बिंदी के रूप में नहीं लिखा जाना चाहिए वैसे उर्दू में कोई अधिकृत घोषणा नहीं कर सकती क्योंकि हल्दी की गाँठ वाली स्थिति है मेरी .....अत: यहाँ मंच के वरिष्ठ जानकार सदस्यों से मार्गदर्शन की आशा है |
आशा है आप मेरी बातों को परस्पर सीखने के भाव से ही लेंगे
आदरणीय अरुण अनंत भाई , बहुत खूब सूरत गज़ल कही है !! आपको बधाइयाँ ॥
पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,
नाम बदनाम हो न महफ़िल में,
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली.. -------------- दोनो शे र लाजवाब लगे , बहुत सारी बधाइयाँ ॥
kshma kare par.......kintu rachna me katipaya .....sudhar mere anusaar achhe rahenge
इश्क में डूब kar इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,
भा गई सादगी hame unki ,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,
वश में पागल ये दिल नहीं अब तो,
धडकनें छेड़ बेलगाँ ( ? ) कर ली,
पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली, wah wah wah wah wah speechless
नाम बदनाम हो न महफ़िल में,
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली.. bahut khoob.........
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