बह्र : हज़ज़ मुसम्मन सालिम
मुलायम फूल सा हो दिल या दरपन टूट जाता है,
सदा संदेह से बरसों का बंधन टूट जाता है,
जमीं जब रार बोती है सगे दो भाइयों में तो,
मधुर संबंध आपस का पुरातन टूट जाता है,
तुम्हारी याद में मैया मैं जब आंसू बहाता हूँ,
दिवारें सील जाती हैं कि आँगन टूट जाता है,
पृथक प्रारब्ध ने हमको किया है जानता हूँ पर,
विरह की वेदना में जूझके मन टूट जाता है,
झड़ी नैनों…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 5:00pm — 17 Comments
दुष्ट दुर्जन पशु बराबर हो गए,
आज कल इंसान पत्थर हो गए,
क़त्ल चोरी रेप दंगो के विषय,
सुर्ख़ियों में आज ऊपर हो गए,
स्वार्थ से कोमल ह्रदय को सींचकर,
प्रेम से वंचित हो ऊसर हो गए,
अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,
ढह गई दीवार आदर भाव की,
प्रेम के आवास खँडहर हो गए,
पथ प्रदर्शक जो कभी थे साथ में,
राह में वो आज ठोकर हो गए,
जो समय के साथ चलते हैं नहीं,
एक दिन वो बद से बदतर हो…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 3:00pm — 22 Comments
आदरणीय गुरुजनों, अग्रजों एवं प्रिय मित्रों घनाक्षरी पर यह मेरा प्रथम प्रयास है कृपया त्रुटियों से अवगत कराएँ.
मनहरण - घनाक्षरी
क्रूरता कठोरता अधर्म द्वेष क्रोध लोभ
निंदनीय कृत्य पापियों का प्रादुर्भाव है,
दूषित विचार बुद्धि और हीन भावना है,
आदर सम्मान न ह्रदय में प्रेम भाव है,
नम्रता सहृदयता विवेक न समाज में,
सभ्यता कगार पर धर्मं का आभाव है,…
Added by अरुन 'अनन्त' on April 21, 2014 at 10:30am — 19 Comments
बह्र : रमल मुसम्मन महजूफ
वज्न : २१२२, २१२२, २१२२, २१२
मध्य अपने आग जो जलती नहीं संदेह की,
टूट कर दो भाग में बँटती नहीं इक जिंदगी.
हम गलतफहमी मिटाने की न कोशिश कर सके,
कुछ समय का दोष था कुछ आपसी नाराजगी,
आज क्यों इतनी कमी खलने लगी है आपको,
कल तलक मेरी नहीं स्वीकार थी मौजूदगी,
यूँ धराशायी नहीं ये स्वप्न होते टूटकर,
आखिरी क्षण तक नहीं बहती ये आँखों की नदी,
रात भर करवट बदलना याद करना रात भर,
एक अरसे से…
Added by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 2:30pm — 40 Comments
बदला है वातावरण, निकट शरद का अंत ।
शुक्ल पंचमी माघ की, लाये साथ बसंत ।१।
अनुपम मनमोहक छटा, मनभावन अंदाज ।
ह्रदय प्रेम से लूटने, आये हैं ऋतुराज ।२।
धरती का सुन्दर खिला, दुल्हन जैसा रूप ।
इस मौसम में देह को, शीतल लगती धूप ।३।
डाली डाली पेड़ की, डाल नया परिधान ।
आकर्षित मन को करे, फूलों की मुस्कान ।४।
पीली साड़ी डालकर, सरसों खेले फाग ।
मधुर मधुर आवाज में, कोयल गाये राग ।५।
गेहूँ की बाली मगन, इठलाये अत्यंत ।…
Added by अरुन 'अनन्त' on February 3, 2014 at 12:00pm — 29 Comments
बद से बदतर हाल है, नाजुक हैं हालात ।
बोझिल लगती जिंदगी, पल पल तुम पश्चात ।१।
बरसी हैं कठिनाइयाँ, उलझें हैं हालात ।
हर पल भीतर देह में, जख्म करें उत्पात ।२।
दिन काटे कटते नहीं, मुश्किल बीतें रात ।
होता है आठों पहर, यादों का हिमपात ।३।
रूठी रूठी भोर है, बदली बदली रात ।
दरवाजे पर सांझ के, पीड़ा है तैनात ।४।
आती जब भी याद है, बीते दिन की बात ।
धीरे धीरे दर्द का, बढ़ता है अनुपात ।५।
व्याकुल मन की हर दशा, लिखते हैं हर…
Added by अरुन 'अनन्त' on January 23, 2014 at 11:30am — 16 Comments
बह्र : हज़ज मुरब्बा सालिम
सदा दिन रात भिनसारे,
गिरें नैनों से अंगारे,
हमें पागल वो कहते हैं,
थे जिनकी आँख के तारे,
समझना है कठिन बेहद,
हकीकत प्यार की प्यारे,
घुटन गम दर्द तन्हाई,
लगें अपने यही सारे,
हमारी रूह तक गिरवी,
वो केवल दिल ही थे हारे,
यही अब आखिरी ख्वाहिश,
जहां पत्थर हमें मारे.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on January 9, 2014 at 11:00am — 33 Comments
बह्र-ए- खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22
इश्क में डूब इन्तहाँ कर ली,
यार मुश्किल में अपनी जाँ कर ली,
भा गई सादगी अदा हमको,
जल्दबाजी में हमने हाँ कर ली,
वश में पागल ये दिल नहीं अब तो,
धडकनें छेड़ बेलगाँ कर ली,
पाँव जख्मी लहू से लथपथ हैं,
राह ने ठोकरें जवाँ कर ली,
नाम बदनाम हो न महफ़िल में,
शायरी मैंने बेजबाँ कर ली..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on January 4, 2014 at 4:12pm — 36 Comments
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22
मौत के साथ आशिकी होगी,
अब मुकम्मल ये जिंदगी होगी,
उम्र का ये पड़ाव अंतिम है,
सांस कोई भी आखिरी होगी,
आज छोड़ेगा दर्द भी दामन,
आज हासिल मुझे ख़ुशी होगी,
नीर नैनों में मत खुदा देना,
सब्र होगा अगर हँसी होगी,
आखिरी वक्त है अमावस का,
कल से हर रात चाँदनी होगी.
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on December 25, 2013 at 12:30pm — 25 Comments
बहरे रमल मुसमन महजूफ
2122 2122 2122 212
फूल जो मैं बन गया निश्चित सताया जाऊँगा,
राह का काँटा हुआ तब भी हटाया जाऊँगा,
इम्तिहान-ऐ-इश्क ने अब तोड़ डाला है मुझे,
आह यूँ ही कब तलक मैं आजमाया जाऊँगा,
लाख कोशिश कर मुझे दिल से मिटाने की मगर,
मैं सदा दिल के तेरे भीतर ही पाया जाऊँगा,
एक मैं इंसान सीधा और उसपे मुफलिसी,
काठ की पुतली बनाकर मैं नचाया जाऊँगा,
जख्म भीतर जिस्म में अँगडाइयाँ लेने लगे,
मैं बली फिर से किसी…
Added by अरुन 'अनन्त' on December 8, 2013 at 12:00pm — 26 Comments
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22
जिस्म में जान जब नही होगी,
शांत चुपचाप दोस्त रहने दो,
सत्य बोलूँगा खलबली…
Added by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2013 at 1:00pm — 26 Comments
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
तमन्ना यही एक पूरी खुदा कर,
जमी ओढ़ लूँ मैं फलक को बिछा कर,
शुकूँ से भरी नींद अँखियों को दे दे,
दुआओं तले माँ के बिस्तर लगा कर,
बढ़ा हौसला दे मेरी झोपड़ी का,
बुजुर्गों के आशीष की छत बना कर,
अमन शान्ति का शुद्ध वातावरण हो,
मुहब्बत पिला दे शराफत मिला कर,
सितारों भरी एक दुनिया बसा रब,
अँधेरे का सारा जहाँ अब मिटा कर..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on December 5, 2013 at 4:00pm — 38 Comments
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22
बात क्या है जो रात भारी है,
इश्क है या कोई बिमारी है,
जान लेती रही हमेशा पर,
याद तेरी बहुत दुलारी है,
मौत से डर के लोग जीते हैं,
जिंदगी ये ही सबसे प्यारी है,
हुस्न कातिल सही सुनो लेकिन,
सादगी फूल सी तुम्हारी है,
हाथ खाली ही लेके जायेगा,
जग से राजा भले भिखारी है....
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 11:30am — 29 Comments
भलाई का इरादा हो,
परस्पर प्रेम आधा हो,
मुरारी की सुनूँ मुरली,
मेरा मन झूम राधा हो,
लबालब प्रेम से हो जग,
गली घरद्वार वृंदा हो,
यही मैं चाहता हूँ रब,
मेरी चाहत चुनिन्दा हो,
ह्रदय में प्रेम उपजे औ,
मधुर सम्बन्ध जिन्दा हो,
खुले आकाश के नीचे,
सदा निर्भय परिन्दा हो,
बसे इंसानियत दिल में,
मरा भीतर दरिन्दा हो....
मौलिक व अप्रकाशित ..
Added by अरुन 'अनन्त' on December 1, 2013 at 3:30pm — 28 Comments
प्रेम रूप हैं राधिका, प्रेम हैं राधेश्याम ।
प्रेम स्वयं माते सिया, प्रेम सियापतिराम ।।
सत्यवती सा प्रेम जो, हो जीवन में साथ ।
कष्ट उचित दूरी रखे, मृत्यु छोड़ दे हाथ ।।
अद्भुत भाषा व्याकरण, विभिन्न रूप प्रकार ।
प्रेम धरा पर कीमती, ईश्वर का उपहार ।।…
Added by अरुन 'अनन्त' on November 22, 2013 at 12:58pm — 13 Comments
बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम,
मदरसा बना या मदीना बना दे,
मुझे कीमती इक नगीना बना दे,
बिना मय के जैसे तड़पता शराबी,
समंदर सा प्यासा हसीना बना दे,
मुहब्बत की जिसमें रहे ऋतु हमेशा,
अगर हो सके वो महीना बना दे,
सुकोमल बदन से जरा मैं लिपट लूँ,
मेरे जिस्म को तू मरीना बना दे,
मरीना = मुलायम कपडा
लिखा हो जहाँ नाम तेरी कहानी,
ह्रदय की धरा को सफीना बना दे....
सफीना : किताब
(मौलिक एवं…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on November 17, 2013 at 4:30pm — 17 Comments
न्याय के घर झूठ भारी
सत्य की अवहेलना है,
अब पतन निश्चित वतन का,
दण्ड सबको झेलना है,
पाप का पापड़ कहाँ तक,
मौन रहकर बेलना है.
दांव पे साँसे लगी हैं,
ये जुआ भी खेलना है,
मृत्यु की खाई में बाकी,
शेष जीवन ठेलना है....
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on November 17, 2013 at 12:30pm — 19 Comments
मन से सच्चा प्रेम दें, समझें एक समान ।
बालक हो या बालिका, दोनों हैं भगवान ।।
उत्तम शिक्षा सभ्यता, भले बुरे का ज्ञान ।
जीवन की कठिनाइयाँ, करते हैं आसान ।।
नित सिखलायें नैन को, मर्यादा सम्मान ।
हितकारी होते नहीं, क्रोध लोभ अभिमान ।।
ईश्वर से कर कामना, उपजें नेक विचार ।
भाषा मीठी प्रेम की, खुशियों का आधार ।
सच्चाई ईमान औ, सदगुण शिष्टाचार ।
सज्जन को सज्जन करे, सज्जन का व्यवहार ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on November 14, 2013 at 3:00pm — 23 Comments
अंतस मन में विद्यमान हो,
तुम भविष्य हो वर्तमान हो,
मधुरिम प्रातः संध्या बेला,
प्रिये तुम तो प्राण समान हो....
अधर खिली मुस्कान तुम्हीं हो,
खुशियों का खलिहान तुम्हीं हो,
तुम ही ऋतु हो, तुम्हीं पर्व हो,
सरस सहज आसान तुम्हीं हो.
तुम्हीं समस्या का निदान हो,
प्रिये तुम तो प्राण समान हो....
पीड़ाहारी प्रेम बाम हो,
तुम्हीं चैन हो तुम्हीं अराम हो,
शब्दकोष तुम तुम्हीं व्याकरण,…
Added by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 12:30pm — 28 Comments
बह्र : रमल मुसद्दस महजूफ
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2
तंग बेहद हाथ खाली जेब है,
सत्य मेरा बोलना ही एब है,
पाँव नंगे वस्त्र तन पे हैं फटे,
वक्त की कैसी अजब अवरेब है,
( अवरेब = चाल )
जख्म की जंजीर ने बांधा मुझे,
दर्द का हासिल मुझे तंजेब है,
( तंजेब = अचकन, लम्बा पहनावा )
जुर्म धोखा देश में जबसे बढ़ा,
साँस भी लेने में अब आसेब है,
( आसेब = कष्ट )
भेषभूषा मान मर्यादा ख़तम,…
Added by अरुन 'अनन्त' on November 6, 2013 at 12:30pm — 32 Comments
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