ख़ुशी से हंसते-हंसते लब, मुस्कुराना भूल आये हैं,
आज हम अपने ही घर का, ठिकाना भूल आये हैं,
यादों के सब लम्हे , यादों से मिटाकर हम,
उसके साथ वो गुजरा, जमाना भूल आये हैं,
बुझाकर रख गई जब वो, सुहाने साथ बीते पल,
सुलगता यादों का वो पल छिन, जलाना भूल आये हैं,
लगी जब चोट हकीकत की, जग गई नींद से आँखें,
बंद आँखों पर ख्वाबों को, सजाना भूल आये हैं,
उसे खुशहाल रखना, इस दिवाने दिल की आदत थी,
अब उसकी खातिर अपने अश्क, बहाना भूल आये हैं....
Comment
आदरणीया रेखा जी आपने मुझे बेटा कहा है और मैंने आपको माँ. और जब माँ बेटे की तारीफ करती है तो मन को बड़ी प्रसंता होती है.
आपको नमन
आदरणीया हरीश जी आपकी बधाई स्वीकार है. आपको प्रणाम
आदरणीया अलबेला जी टिपण्णी के जरिये आशीर्वाद देने के लिए शुक्रिया.
अरुण जी
अरूण जी नमस्ते,
ख़ुशी से हंसते-हंसते लब, मुस्कुराना भूल आये हैं,
आज हम अपने ही घर का, ठिकाना भूल आये हैं,
बहुत सुंदर, हार्दिक बधाई
अच्छी ग़ज़ल कही जनाब !
वाह !
लगी जब चोट हकीकत की, जग गई नींद से आँखें,
बंद आँखों पर ख्वाबों को, सजाना भूल आये हैं,
___उम्दा !
आदरणीया रोशिनी जी बहुत-२ शुक्रिया.
Arun ji , bahut sunder gazal kahi apne...
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