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जलाया जब रातों में मुझको

छोड़ कर उल्फत की गलियां, मैं तेरे बिन निकल आया,
जलाया जब रातों में मुझको, इक नया दिन निकल आया,

दिल में दफनाई थी यादें, आज जो फुर्सत में खोदीं,
बे-दर्द जिन्दा जख्मों का, वही पल-छिन निकल आया,

सोंचकर रात भर जागे, सबेरा कल नया होगा,
मगर बीता वही समय उठ के , प्रतिदिन निकल आया,

गुमसुदगी की राहों पर, भटकता छोड़ गया मुझको , 
वही मंजर था जो मेरे दोस्तों, बड़ा कठिन निकल आया,

किताबें खोल कर हैं बैठी, यादों से लहुलुहान वही पन्ने,
पढ़ते - पढ़ते तेरा दिया हुआ, मुझमे चिह्न निकल आया..........

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2012 at 10:56am

आदरणीय भ्रमर जी और उमाशंकर मिश्र जी आप दोनों जैसी महान हंस्तियों की जब-२ टिपण्णी मिलती है, ह्रदय गद-गद हो जाता है. शुक्रिया मेहरबानी

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 11, 2012 at 10:17pm

ऐसे हर लाईन  दमदार है

दिल में दफनाई थी यादें, आज जो फुर्सत में खोदीं,
बे-दर्द जिन्दा जख्मों का, वही पल-छिन निकल आया, विशेषकर यह लाईन दिल के आर पार उतर गई

बहुत बहुत बधाई अरुण जी

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 11, 2012 at 7:09pm

छोड़ कर उल्फत की गलियां, मैं तेरे बिन निकल आया,
जलाया जब रातों में मुझको, इक नया दिन निकल आया,

दिल में दफनाई थी यादें, आज जो फुर्सत में खोदीं, 
बे-दर्द जिन्दा जख्मों का, वही पल-छिन निकल आया,

प्रिय अरुण 'अनंत' जी ..बहुत सुन्दर ..रचनाएँ रंग ला रही है  ..आभार मित्र  ..भ्रमर५ 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2012 at 5:33pm

संदीप जी शुक्रिया जो बातें आप आज बता रहे हैं, वो सब मुझे आदरणीय योगराज SIR जी बता चुके हैं.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 11, 2012 at 2:31pm

मित्र अरुण जी,

बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति है आपकी| एक निवेदन है अन्यथा न लीजियेगा थोड़ा शिल्प पर और परिश्रम करिये आपकी कृतियाँ निखर कर सामने आएंगी| ओबीओ पर आने से पहले यही ख़ामी मुझमें भी थी पर यहाँ के विद्वतजनों के सानिध्य में कुछ हद तक मैंने उस पर क़ाबू पा लिया है| सादर,

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2012 at 11:22am

आदरणीया राजेश कुमारी आपका स्नेह यूँ ही मिलता रहे. आपको प्रणाम नमन

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2012 at 11:21am

आदरणीया रेखा जी आपने टिपण्णी की बड़ी प्रसनता हुई.

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2012 at 11:20am

सवी जी आपको मेरी रचना पसंद आई, आपको प्रणाम आभार.

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 11, 2012 at 11:19am

आदरणीय अलबेला जी हार्दिक अभिनन्दन हौंसल आफजाई के लिए.

Comment by Rekha Joshi on July 10, 2012 at 6:04pm

अरुण जी 

सोंचकर रात भर जागे, सबेरा कल नया होगा, 
मगर बीता वही समय उठ के , प्रतिदिन निकल आया,सुंदर भाव ,बधाई 

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