अंतस मन में विद्यमान हो,
तुम भविष्य हो वर्तमान हो,
मधुरिम प्रातः संध्या बेला,
प्रिये तुम तो प्राण समान हो....
अधर खिली मुस्कान तुम्हीं हो,
खुशियों का खलिहान तुम्हीं हो,
तुम ही ऋतु हो, तुम्हीं पर्व हो,
सरस सहज आसान तुम्हीं हो.
तुम्हीं समस्या का निदान हो,
प्रिये तुम तो प्राण समान हो....
पीड़ाहारी प्रेम बाम हो,
तुम्हीं चैन हो तुम्हीं अराम हो,
शब्दकोष तुम तुम्हीं व्याकरण,
तुम संज्ञा हो सर्वनाम हो.
तुम पूजा हो तुम्हीं ध्यान हो,
प्रिये तुम तो प्राण समान हो....
.
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
अब ? वैसे अब ही.. :-))))
लगता है सही समय पर सार्थक गीत उपजा है, भाई ... . बधाई.
आदरणीय अरुण भाईजी ने ’अराम’ को भी रेखांकित किया है.
और,
//अनुज राम किन्तु अब मुश्किल ये है कि इतना सब आपको कैसे पता चला भाई //
आपको जानना चाहिये, अनुज कि दीदियो की बातें छोटों को मालूम चल ही जाती हैं. आप प्रश्न करने की जगह बस स्वीकार कर लेते.
:-))))))))))))
हा हा हा हा..................
आदरणीय अच्छी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें। प्रिय के प्रति समर्पण अति प्रशंसनीय है, पुन: बधाई।
वाह! एक नयी विधा आपकी कलम से पाकर मन गढ़ाद हो गया!
आपको हार्दिक बधाई!
वाह! मधुर मधुर गीत, प्रेम कि चाशनी मे डूब के लिखा है ऐसा लगता है|
बधाई आ0 अरुण जी!
शब्दकोष तुम तुम्हीं व्याकरण,
तुम संज्ञा हो सर्वनाम हो...क्या बात है अरुण जी ..इस रचना के लिए तहे दिल बधाई कबूलें ..सादर
वाह वाह अरुन भाई..... प्रियतमा का विभिन्न उपमाओं से सुंदर तरीके से वर्णन किया है आपने..... अति सुंदर.... बहुत बहुत बधाई इस प्रेम से भरी रचना हेतु.....
हार्दिक आभार आदरणीय प्रवीन मलिक जी
हाहाहा सही कहा अनुज राम किन्तु अब मुश्किल ये है कि इतना सब आपको कैसे पता चला भाई. हार्दिक आभार आपका
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