दुष्ट दुर्जन पशु बराबर हो गए,
आज कल इंसान पत्थर हो गए,
क़त्ल चोरी रेप दंगो के विषय,
सुर्ख़ियों में आज ऊपर हो गए,
स्वार्थ से कोमल ह्रदय को सींचकर,
प्रेम से वंचित हो ऊसर हो गए,
अंततः जब सत्य मैंने कह दिया,
प्राण लेने को वो तत्पर हो गए,
ढह गई दीवार आदर भाव की,
प्रेम के आवास खँडहर हो गए,
पथ प्रदर्शक जो कभी थे साथ में,
राह में वो आज ठोकर हो गए,
जो समय के साथ चलते हैं नहीं,
एक दिन वो बद से बदतर हो गए.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आपकी ग़ज़ल के कई शेर आज के दौर और हालात को बखूबी बयां करते हुए हैं, आदरणीय अरुन अनन्तजी.
बहुत-बहुत बधाई.
इस शेर के लिए विशेष दाद दूँगा.
पथ प्रदर्शक जो कभी थे साथ में,
राह में वो आज ठोकर हो गए,..
बहुत खूब !
Beautiful
आदरणीय गिरिराज सर बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल की सराहना हेतु स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय शिज्जु भाई जी ग़ज़ल आपको पसंद आई सफल हुई बहुत बहुत शुक्रिया आपका
आदरणीय विजय सर बहुत बहुत शुक्रिया आपका
आदरणीय गुरुदेव श्री ग़ज़ल पर आपका आशीष प्राप्त हुआ ग़ज़ल सफल हुई आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय आशुतोष जी आपकी टिपण्णी से मन प्रसन्न हो गया ग़ज़ल की रूह तक आप पहुंचें ग़ज़ल सफल हुई हार्दिक आभार आपका.
आदरणीय केवल भाई बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय गोपाल जी बहुत बहुत आभार आपका
आदरणीया शालिनी जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका
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