बद से बदतर हाल है, नाजुक हैं हालात ।
बोझिल लगती जिंदगी, पल पल तुम पश्चात ।१।
बरसी हैं कठिनाइयाँ, उलझें हैं हालात ।
हर पल भीतर देह में, जख्म करें उत्पात ।२।
दिन काटे कटते नहीं, मुश्किल बीतें रात ।
होता है आठों पहर, यादों का हिमपात ।३।
रूठी रूठी भोर है, बदली बदली रात ।
दरवाजे पर सांझ के, पीड़ा है तैनात ।४।
आती जब भी याद है, बीते दिन की बात ।
धीरे धीरे दर्द का, बढ़ता है अनुपात ।५।
व्याकुल मन की हर दशा, लिखते हैं हर बात ।
प्रीतम संबंधी सखा, कागज़ कलम दवात ।६।
अधरों की रूठी हँसी, हिस्से आई मात ।
सावन देती हैं हरा, नैनों की बरसात ।७।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
अधरों की रूठी हँसी, हिस्से आई मात ।
सावन देती हैं हरा, नैनों की बरसात
बहुत बढ़िया
बधाई
सस्नेह
बहुत सुन्दर ..हृदयस्पर्शी दोहे ...बहुत बहुत बधाई प्रिय अरुन जी
वाह.. दोहे तो सधे हुए हैं .. तनिक और साधिये.. बहुत-बहुत बधाई भाई..
और काग़ज़ कलम दवात सुनने में तो बड़े अच्छे लगते हैं..
लेकिन हमें .. हम सबको कितने वर्ष हुए इन्हें हाथों से छुए हुए .. कुछ याद भी है .. :-)))
चला गया जो दौर वो, रह-रह करता हौण्ट ..
कागज मोनीटर हुए, अक्षर सारे फ़ॉण्ट .. ..
:-))))
विछोह के दर्द को बहुत मर्मस्पर्शी दोहों में ढाला गया है
शुभकामनाएं प्रिय भाई अरुण जी
अजय भाई दोहे आपको पसंद आये सार्थक हुए बहुत बहुत धन्यवाद आपका स्नेह बनाये रखिये
हार्दिक आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आती जब भी याद है, बीते दिन की बात ।
धीरे धीरे दर्द का, बढ़ता है अनुपात ||
व्याकुल मन की हर दशा, लिखते हैं हर बात ।
प्रीतम संबंधी सखा, कागज़ कलम दवात ||
भावप्रधान दोहावली के हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय.
वाह !! प्रिय अरुण बहुत सुंदर दोहावली बधाई ।
आदरणीय गिरिराज सर बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने इंगित किया है उसपर विचार करता हूँ स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय अखिलेश सर दोहे आपको पसंद आये संतोष हुआ, जैसा आपने कहा उस पर विचार करके मैंने यह लिखा था हो सकता है मैं गलत हूँ सुधारने का प्रयास करता हूँ.
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