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दोहे : अरुन शर्मा 'अनन्त'

प्रेम रूप हैं राधिका, प्रेम हैं राधेश्याम ।
प्रेम स्वयं माते सिया, प्रेम सियापतिराम ।।

सत्यवती सा प्रेम जो, हो जीवन में साथ ।
कष्ट उचित दूरी रखे, मृत्यु छोड़ दे हाथ ।।

अद्भुत भाषा व्याकरण, विभिन्न रूप प्रकार ।
प्रेम धरा पर कीमती, ईश्वर का उपहार ।।

निश्छल यदि हो भावना, मर्यादित हो प्यार ।
नृत्य झूम कर मन करे, तन करता श्रृंगार ।।

लगे देखिये प्रेम से, स्वर्णिम यह संसार ।
सदा प्रेम से ही बने, सुन्दर घर परिवार ।।

प्रेम समस्या से करें, होगा दुख का अंत ।
प्रेम अमिट संसार में, कहें महात्मा संत ।।

पशु पक्षी जन जीव सब, सुन मुरली की तान ।
मन्त्र मुग्ध हैं प्रेम में, नहीं रहा कुछ ध्यान ।।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Saurabh Pandey on December 1, 2013 at 7:49pm

इस अद्भुत कहन प्रयास के लिए हृदय से बधाई, अरुन भाई ! मन बार-बार मुग्ध हुआ जाता है !
किन्तु, तनिक.. बस तनिक सा धैर्य इस छंद प्रस्तुति को आपकी समस्त रचनाओं के बीच अति विशिष्ट का दर्ज़ा दिला देता.

आदरणीया प्राचीजी ने जो कुछ इंगित किया है उसे अवश्य मान दें और तदनुरूप काम करें

प्रेम पगा हर बंद है, प्रेमपरक हर बात
तथ्य सिंधु में डूबिये, शिल्प न खाए मात !

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 26, 2013 at 6:05pm

प्रेम की सुन्दरता को सुकोमलता और सात्विकता से परिभाषित करते बहुत सुन्दर दोहे प्रिय संदीप जी 

बहुत बहुत बधाई 

प्रेम रूप हैं राधिका, प्रेम हैं राधेश्याम । .................मात्रा पुनः देख लें 

अद्भुत भाषा व्याकरण, विभिन्न रूप प्रकार ।..........गेयता बाधित हो रही है 

लगे देखिये प्रेम से, स्वर्णिम यह संसार ।.........कथ्य स्पष्टता के लिए थोड़ा सा और प्रयास मांगता है 

प्रेम समस्या से करें, होगा दुख का अंत । ......इसका अर्थ मुझे स्पष्ट नहीं हुआ ...समस्याओं से प्रेम करें तब तो समस्याएँ पीछा नहीं छोड़ेंगी ...:)))

अपनी समझ भर यही कुछ कहना है..शायद सहमत हों 

सस्नेह शुभकामनाएं 

Comment by बसंत नेमा on November 23, 2013 at 10:34am

 आदरणीय भाई अरुण शर्मा  जी  वाह अनुपम दोहावली।  हार्दिक बधाई  आपको। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 23, 2013 at 7:50am

बेहतरीन दोहावली भाई अरुण जी बधाई स्वीकार करें

Comment by ram shiromani pathak on November 22, 2013 at 11:19pm

वाह आदरणीय भाई अरुण शर्मा  जी  वाह अनुपम दोहावली। …हर्दिक बधाई आपको। । सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 22, 2013 at 9:51pm


निश्छल यदि हो भावना, मर्यादित हो प्यार ।
नृत्य झूम कर मन करे, तन करता श्रृंगार ।।.............सच! बहुत अच्छा सन्देश, प्रेम निश्छल भावनाओं से ही
                                                                                    होता है
प्रेम को परिभाषित कर, सटीक संदेशप्रद दोहावली रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुण अनंत जी


Comment by Meena Pathak on November 22, 2013 at 6:33pm

वाह!! अरुन जी प्रेम से पगी दोहावली के लिए बधाई आप को 

Comment by वेदिका on November 22, 2013 at 6:21pm

प्रेम की बहुत खूबसूरत व्याख्या की आपने आ० अरुण जी!

लगे देखिये प्रेम से, स्वर्णिम यह संसार ।
सदा प्रेम से ही बने, सुन्दर घर परिवार ।। यह परिभाषा तो गदगद कर गयी हृदय को!

प्रेम रूप हैं राधिका, प्रेम हैं राधेश्याम ।
प्रेम स्वयं माते सिया, प्रेम सियापतिराम ।। अद्भुत!!

बहुत बहुत बधाई!

Comment by Sarita Bhatia on November 22, 2013 at 5:24pm

वाह वाह अरुण प्रेम ही प्रेम 

प्रेमपूर्ण दोहावली के लिए बधाई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 22, 2013 at 3:23pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय गोपाल सर दोहे आपको पसंद आये सुनकर प्रसन्नता हुई.

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