“ पिताजी, वो अपनी नदी के पास वाली जमीन लगभग कितनी कीमत रखती होगी, अगर उसे बेच दिया जाय तो कैसा रहेगा ?
“क्यों..? बेटा क्या जरुरत आ पड़ी है ? खुली तिजौरी को बंद करने की..”
“ पिताजी..! ऐसे ही एक प्लान बनाया है, जिससे भविष्य संवर सकता है”
“ अरे बेटा..भविष्य संजोये रखने से संवरता है खोने से नही, वैसे मैंने अपनी नौकरी के रहते तुम्हारी पढाई पर बहुत खर्च किया, यहाँ तक की तुम्हारा घर बसाने में अपना पी.एफ. का पैसा भी झोंक दिया, , मैं तो यहाँ छोटे शहर में अपनी पेंशन से अपना और तुम्हारी माँ का खर्च चला रहा हूँ, खेत किराय पर दे रखे है तो वह आय भी तुम बड़े शहर में अपनी पत्नी और बच्चे पर खर्च कर रहे हो, तुम्हारी उम्र भी ४०वर्ष की हो गई है, कुछ समझ नहीं आ रहा हो तो यहीं वापस आ जाओ ”
“ पिताजी..मैं बेवकूफ नही हूँ, बड़े शहर में संघर्ष कर रहा हूँ आप यह बातें समझते क्यों नहीं हो.? “
“ हाँ..बेटा समझता हूँ पिछले महीने तुम्हारे वहां आया तो था,तब देख चुका तुम्हारा संघर्ष, तुमने अपने बच्चे को होस्टल में डाल रखा है तुम दोनों पति-पत्नी रात भर कम्प्यूटर के अंतरजाल में फंसे रहते हो, तुम्हारी सुबह रोज ११ बजे होती है और दोपहर ४ बजे , भोजन करने का कोई निश्चित समय नहीं, नहाना तो बहुत दूर की बात, पूरे घर में मकड़ी के जालो में कीड़े-मकोड़े फंसे हुए ऐसे लगते है जैसे कोई नई तरह की सजावट हो, फर्श पर धूल ऐसी बिछा रखी है जैसे रोज चोरों के पैरों के निशान लेना हो, रसोई में बर्तनों में जंग सा लगा हुआ है, पीने के पानी को गंदा कर लेते हो उसके बाद फ़िल्टर करके पीते हो ,चाय के मग पर चीटियों की न जाने कितनी पीढियां गुजर गई हों, शौचालय के तो क्या कहने.? रेलवे स्टेशन के शौचालय को शर्म आ जाय, कपड़ो से पता लगता है कि पूरी कॉलोनी के लोगों ने तुम लोगों को धोने को दे गये हों, कहीं-कहीं तो फर्श पर सामान ऐसा बिखरा पड़ा है, कि बेटा मुझे ६५ की उम्र में भी कूद कर निकलना पड़ा, बिस्तरों और चादरों पर दाग-धब्बों से पूरे विश्व के नक़्शे बने हुए है, अलमारिया खाली पड़ीं है और कुर्सियां सामान से लदी हुयी है, इतनी गंदगी देखकर तो तुम्हारा वैक्यूम क्लीनर भी हड़ताल कर देगा ,घर में ऐसी कोई जगह नहीं है जहाँ डाक्टर के पर्चे और दवाइयाँ न रखी हों, तुम दोनों पति-पत्नी अपनी मोटी काया को पतली करने ,पैसे खर्च करके व्यायामशाला जाते हो, तुम्हारी मोटर-साईकिल में पेट्रोल डलवाने के पैसे नही रहते थे, और अब कार खरीद ली है..वाह! सच बहुत संघर्ष है मानता हूँ.”
“ पिताजी..आपकी ऐसी बातें मुझे बहुत दुखी करती है, आप हमेशा ही मेरे जीवन में दोष निकालते रहते है”
“ क्या करूँ बेटा..? तुम मेरे दुश्मन होते तो तुम्हे कभी दुखी नहीं करता और न ही दोष निकालता, मैंने अपने ज्ञान, अनुभव और संस्कारों को अपने दिमाग और दिल में संजोया है, और तुमने उन्हें अपनी डायरी व् पी.डी. में, जिनके फुल हो जाने पर रद्दी में रख दिया गया है,जिन्हें कभी वापस नही खोला.
अभी समय है बेटा..! यहाँ अपना खुद का घर है सब साथ रहेंगे, छोटे शहर में खर्च भी कम रहता है, तुम्हारा मकान का किराया भी बचेगा और इतने पढ़े-लिखे तो हो कि यहीं कुछ कर सकते हो, जमीन बेचने की बात ही नही आएगी. और बेटा..! यह जमीने हमारे पूर्वजों ने भूखे-नंगे रहकर तौजी भर-भर कर बचाकर आज हमें सौंप कर चले गये जो आज हमारी ताकत है, क्यूँ न हम भी उसी से आय लेकर उसे सुरक्षित रखे ताकि अपनी अगली पीढियों को इधर-उधर भटकना न पढ़े.
“ बस..पिताजी, बहुत हो गया आपका ज्ञान, अब शायद मुझे न्यायालय से ही अपना अधिकार मांगना पड़ेगा”
“ हाँ..बेटा, यही बाकी रह गया है , हमारे बुजुर्ग कहते थे कि माँ अगर बच्चे को ज्यादा उम्र तक दूध पिलाये तो दूध न आने पर, बच्चा खून चूसने लगता है और बाप अगर बच्चे को ज्यादा उम्र तक पालता रहे तो बच्चे एक समय में बाप से ही हक़ छिनने लगता है, यह सब तुम्हारी मक्कारी की निशानी है, जो बिना कर्तव्य किये अधिकार की बात कर रहे हो, खैर... अच्छा शार्ट-कट है”
जितेन्द्र 'गीत'
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
यह एक सच्ची कहानी है आदरणीय सुरेन्द्र जी, आपकी प्रतिक्रिया से बहुत मनोबल मिला आपका बहुत बहुत आभार
सादर!
“ क्या करूँ बेटा..? तुम मेरे दुश्मन होते तो तुम्हे कभी दुखी नहीं करता और न ही दोष निकालता, मैंने अपने ज्ञान, अनुभव और संस्कारों को अपने दिमाग और दिल में संजोया है, और तुमने उन्हें अपनी डायरी व् पी.डी. में, जिनके फुल हो जाने पर रद्दी में रख दिया गया है,जिन्हें कभी वापस नही खोला....
माँ अगर बच्चे को ज्यादा उम्र तक दूध पिलाये तो दूध न आने पर, बच्चा खून चूसने लगता है और बाप अगर बच्चे को ज्यादा उम्र तक पालता रहे तो बच्चे एक समय में बाप से ही हक़ छिनने लगता है..
जितेन्द्र भाई एक यथार्थ और सच को स्पर्श करते हुए बहुत अच्छी कहानी दिली बधाई ...
भ्रमर ५
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभार आदरणीय राम भाई, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखनकर्म को बहुत मनोबल मिला आदरणीय अरुण अनन्त जी, आपका ह्रदय से आभार, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
आपका हार्दिक आभार आदरणीय सोमवीर जी
सादर!
आपने रचना को पसंद किया आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया मीना दीदी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
यह एक सत्य घटना पर आधारित कहानी है पिता के वार्तालाप से पुत्र के झूठे संघर्ष का चित्रण किया गया है,जो गैरजिम्मेदारी से अपना जीवनयापन कर रहा है,
आपको कहानी रुचिकर लगी,लेखनकर्म सार्थक हुआ आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय जी.स्नेहिल आशीर्वाद व् मार्गदर्शन बनाये रखियेगा
सादर!
आप बिलकुल सही कह रहे है आदरणीय शुभ्रांशु जी, आजकल कुछ इंसान इन सब बातों को अनुशासनहीन तरीके से ले रहे है, जो अपने वर्तमान ही नही अपितु भविष्य को भी निठल्ला कर लेते हैं.
कहानी पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया हेतु आपका बहुत बहुत आभार
सादर!
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया कुंती जी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
बहुत ही सुन्दर लघुकथा भाई ऐसे ही लिखते रहें . शुभ शुभ
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