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खुशियों का तोहफा

आज सुबह पूजा कर के कल्याणी देवी कमरे मे बैठ गयीं | ठण्ड कुछ ज्यादा थी तो कम्बल ओढ़ कर आराम से कमरे मे गूंज रही गायत्री मन्त्र का आनंद ले रही थी | आँखे बंद कर के वो पूरी तरह से गायत्री मन्त्र मे डूब चुकी थीं तभी अचानक खट-खट की आवाज से उन्होंने आँखे खोली | कोई दरवाजा खटखटा रहा था | बहू रसोई मे थी और पतिदेव पूजा कर रहे थे सो उनको ही मन मार कर कम्बल से निकलना पड़ा | अच्छे से खुद को शाल मे लपेटते हुए उन्होंने गेट खोला तो चौंक गईं | एक मुस्कुराता हुआ आदमी सुन्दर सा गुलाब के फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ा था | कल्याणी देवी सोचने लगीं अरे ! ये किसने भेजा बड़ी असमंजस की स्थिति मे उन्होंने वो गुलदस्ता ले लिया उसके साथ एक और पैकेट था | वो आदमी सब दे कर चला गया अभी कल्याणी देवी अन्दर भी नही आ पायीं कि फोन बजने लगा, जल्दी से अन्दर आ कर उन्होंने फोन उठा लिया |
धीरे से आवाज आई - हेल्लो ..
"हेल्लो..कौन ??" उधर से बहुत धीमी आवाज आई थी सो कल्याणी देवी पहचान नहीं पायीं |
"मम्मी मै हूँ "...
"अरे !! तुम ?? तो इतना धीरे धीरे क्यों बोल रहे हो"...
"मम्मी सुनिए .. अभी-अभी कुछ मिला आप को"..
"हाँ..हाँ .. तो ये सब तुमने भेजा है"..
हाँ .. आप ये सब 'उसे' (बहू) दीजिए अभी और हाँ .. फोन का स्पीकर और फ्रंट वाला कैमरा ऑन कर दीजिए जरा मै भी तो उसके चेहरे का रंग देखूँ | अब कल्याणी देवी सब समझ गयीं थीं | वो टीवी पर देख रही थीं ..कई दिनों से कई 'डे' मनाये जा रहे थे तो आज सबसे बड़ा वाला 'डे'.. वैलेंटाइन डे' है उसी का तोहफा भेजा था सुपुत्र जी ने खैर..वो भारी सा गुलदस्ता लिए रसोई मे पहुँच गयीं, बहू ने जैसे ही घूम कर अपनी सासू माँ को देखा..फोन से आवाज आई "हैप्पी वैलेंटाइन डे" बहू चौंक पड़ी सामने ही सुपुत्र जी स्काइप पर मुस्कुरा रहे थे | बहुरानी की खुशी का ठिकाना नही था ..वो खुशी से चीख पड़ी उनकी खुशी देख कर कल्याणी देवी की आँखे भी भीग गई, अब बारी थी पैकेट खोलने की उसमे से एक प्यारा सा कुशन निकला जिस देख कर बहुरानी ने उसे दिल से लगा लिया उस पर उन दोनों की तस्वीर थी और एक चोकलेट का डिब्बा भी |
आज घर प्रेम की मिठास और गुलाब की सुगंध से भर गया है | प्रेम का ये रंग दोनों के जीवन मे यूँ ही बना रहे दिल से आशीर्वाद देते हुए बेटे-बहू को स्काइप पर अकेला छोड़ कर कल्याणी देवी अपने कमरे मे आ गयीं | कुछ सोच कर उनकी आँखों में दो बूँद आँसू आ गये जिसे उन्होंने आँचल से पोंछा और फिर से गायत्री मंत्र सुनने लगीं | बेटे बहू की हँसी की आवाज अब भी आ रही थी |


मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Shyam Narain Verma on February 15, 2014 at 1:00pm
बेहतरीन लघुकथा, बधाई आपको,,,
Comment by Meena Pathak on February 15, 2014 at 12:08pm

सादर आभार आदरणीय आशुतोष जी 

Comment by Meena Pathak on February 15, 2014 at 12:07pm

आभार अन्नपूर्णा जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 15, 2014 at 11:21am

आदरणीया ..मन को छू लें ने वाली इस लागुकथा के लिए हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by annapurna bajpai on February 14, 2014 at 11:23pm

सुंदर लघु कथा , यही तो समझ दारी है । बहुत बधाई आपको आ0 मीना दी । 

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