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Meena Pathak's Blog (58)

दीपक तले अँधेरा

कलावती देवी को प्राइमरी शिक्षिका के पद से सेवानिवृत्त हुए चौदह पन्द्रह वर्ष बीत  चुके थे | पति का देहांत हो गया था और वह अपने बेटे के साथ रहती थीं | अकेलेपन और अवहेलना ने उनको चिड़ाचिड़ा बना दिया था | कान से कम सुनाई देता था इस लिए खुद भी तेज आवाज में बोलती थीं, ऐसा कि पूरा मोहल्ला सुनता | बाहर बैठ कर अखबार और अध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ना यही उनकी दिनचर्या थी | सास-बहू का जैसे सांप छछूंदर सा बैर था, ना तो बहू उनका ख्याल रखती ना ही वह बहू पर तंज कसने का कोई मौका छोड़तीं | बहू उनका खाना निकाल कर रख…

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Added by Meena Pathak on September 13, 2016 at 3:30pm — 6 Comments

जल बिन !

चारो तरफ से पानी..पानी..पानी की आवाज सुनाई दे रही है | जिधर देखो उधर पानी के लिए लम्बी कतारें व पानी के लिए जूझते लोग, पानी ढोते टैंकर से ले कर ट्रेन तक दिखाई दे रहे हैं | हैण्डपम्प, कुँए सूख गए हैं और तालाब अब रहे नहीं, उस पर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए हैं | पानी के लिए चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है | देश का रीढ़ किसान आस भरी नजरों से आसमान की ओर देख रहा है | प्यास से घरती का कलेजा फट रहा है | विकाश के नाम पर वन प्रदेश खत्म होते जा रहे हैं, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है क्यों की हम…

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Added by Meena Pathak on June 9, 2016 at 5:47pm — 4 Comments

प्रार्थना

हे जग जननी आस तुम्हारा
शब्दों को देती तुम धारा
वाणी को स्वर मिलता तुमसे
कण-कण में है वास तुम्हारा |

दिनकर लेते ओज तुम्ही से
शशि की शीतलता में तुम हो
नभ गंगा की रजत धार में
झिलमिल करता सार तुम्हारा |

सिर पर रख दो वरद हस्त माँ
कलम चले अनवरत मेरी
अंतर्मन के हर पन्ने पर
लिखती हूँ उपकार तुम्हारा ||


मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

Added by Meena Pathak on May 14, 2016 at 8:54am — 3 Comments

सुनो भैया !

 

सुनो भैया !

कहीं मन नहीं लगता

जिधर देखती हूँ

तुम ही दिखाई देते हो

कभी आँगन में

माँ के साथ बैठे हुए, कभी

द्वार पर माँ के साथ

मन की बात करते हुए



मै जब भी आती थी

माँ के साथ-साथ तुम्हारे चेहरे पर भी

चमक आ जाती थी

माँ के आँचल की छाँव में

हम दोनों बचपन की यादें

याद कर खुश होते

और माँ भी युवा हो जाती थी   

दिन कैसे बीत जाते पता ही नहीं चलता



अब वही घर है वही आँगन

पर ना तुम हो ना माँ…

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Added by Meena Pathak on August 29, 2015 at 9:30am — 4 Comments

गीत (समीक्षार्थ)

 

मनवा गाये, मनवा गाये,

मोरा मनवा गये रे



इक गौरैया घर में आई

चुन-चुन तिनका नीड़ बनायी

किया है उसने प्रियतम संग फिर

प्रेम सगाई रे

मनवा गाये मनवा गाये ................



इत्-उत् मटक-मटक दिखलाती

पिया को अपने खूब रिझाती

नित अठखेलियाँ करते दोनों

ज्यूँ भँवर बौराई रे

मनवा गाये ..................................



इक दूजे रंग रंगने लगे थे

प्रणय निवेदन करने लगे थे

आने को थी संतति उनकी

हुए सुखारे रे…

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Added by Meena Pathak on July 7, 2015 at 10:05pm — 7 Comments

कराहती है माँ गंगा

व्यथित है पतितपावनी

अपनी दशा पर आज

प्रश्न पूछती यही सबसे हजार बार

की है किसने दुर्गति ये

कौन है इसका जिम्मेदार ?



राजा, रंक हो या संत

दिया सबको समान अधिकार

सिंचित कर धरा को

भरा संपदा जिसने अपार

विष भर उसकी रगों में फिर

धकेला किसने उसे मृत्यु के द्वार ?



स्नान आचमन से जिसके देव प्रशन्न होते हैं

मुख में इक बूँद ले लोग

स्वर्ग गमन करते हैं

आँचल में उसी के शवों को छुपा

ढेरों मैल बहाया है

दामन पर…

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Added by Meena Pathak on March 20, 2015 at 3:24pm — 18 Comments

सुन् री सखी ....

सुन री सखी फिर फागुन आयो

याद पिया की बहुत रुलायो

इत उत डोलूँ, भेद ना खोलूँ

बैरन नैना भरि-भरि आयो

सुन री सखी फिर ........



जब से गये परदेश पिया जी

भेजे न इक संदेश जिया की

इक-इक पलछिन गिन के बितायो

सुन री सखी फिर ........

ननदी हँसती जिठनी हँसती

दे ताली देवरनियो हँसती

सौतनिया संग पिया भरमायो

सुन री सखी फिर .....



खूब अबीर गुलाल उड़ायें

प्रेम रंग, सब रंग इतराएँ

बिरहा की अगनी ने मोहे जलायो

का पिया ने मोहे,…

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Added by Meena Pathak on March 5, 2015 at 11:42pm — 10 Comments

विश्राम !!

सुन्दर शय्या

अधमुँदी सी आँखे

एक लम्बी सांस

एकांत वास

सोच के तार

अतीत मे जा 

जिंदगी की किताब

खोली जो इक बार

पन्ना- दर- पन्ना

धोखा, छल, आघात

कभी भावुकता तो 

कभी अज्ञानता

भरे निर्णय,

कभी विवशता

रिश्ते निभाने की

तो कभी मजबूरी 

सामाजिकता की,

जीवन की लम्बी डगर

पग-पग अवरोध,

बावजूद, बढ़ती गई वो 

कदम-कदम

लड़खड़ाती,संभलती

तपन दिनकर की सहती,

चढती गई

हर चढाई

मिले…

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Added by Meena Pathak on December 9, 2014 at 10:30pm — 14 Comments

अब तू ही बता !!

ऐ चाँद !

पूजा तुझे वर्षों

हल्दी,कुमकुम,

अक्षत,रोली,पुष्प,

धूप दीप, नैवेद्य,

करती रही अर्पण

आस ये कि तू

अभिसिंचित करेगा

अपनी शीतल रश्मियों से

प्रेम की अनुभूतियों से

दूर कर देगा मेरे

प्रणय की प्रत्येक विसंगतियों से

पर यह क्या किया .....

सब कुछ बदल दिया !

तू उगलता रहा

अपनी चाँदनी में अदृश्य अंगारे

सुलगती रही जीवन की लहरें

झुलसा- झुलसा तन-मन  

अंतरमन का हाहाकार लिए

अब तू ही बता

तुझे कैसे पूजूँ अब…

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Added by Meena Pathak on October 11, 2014 at 1:00pm — 10 Comments

कुछ हाइकू

बूँदे बरसे
घनश्याम ना आये
मन तरसे

अद्भुत बेला
नदियाँ उफनाईं
पानी का रेला

कोयल गाये
बरसे छम छम
मन को भाये

स्वर्ग धरा का
हाहाकार मचाये
नद मन का  

गौरैया आई

उपवन महका
बदरी छायी

व्याकुल धरा
तृप्त हुई जल से
आँचल हरा 

********************
मीना पाठक 
मैलिक /अप्रकाशित 

Added by Meena Pathak on September 18, 2014 at 7:19pm — 6 Comments

हाईकू

ताप प्रचण्ड
उफनाई नदियाँ
तपता भादों |

पथिक भूला
अंतर्मन व्यथित
तिमिर घना |

पथ ना सूझे
पिए नित गरल
कंठ भुजंग |

अल्हड़ नदी
मदमस्त लहरें
नईया डोले |

भजन राम
बसे छवि मन में
नित निहारू |

मनमोहिनी
चंदा सा मुख देख
खुशी मन में |
 
मीना पाठक 
मौलिक /अप्रकाशित 

Added by Meena Pathak on August 23, 2014 at 1:45pm — 25 Comments

पापा बिन ...........!!! (अतुकांत )

नित बैठी रहती हूँ उदास

हर पल आती पापा की याद

सावन में सखियाँ जब

ले कर बायना आती हैं

नैहर की चीजें दिखा-दिखा

इतराती हैं,

तब भर आता है दिल मेरा

पापा की कमी रुलाती है

कहती हैं जब, वो सब सखियाँ

पापा की भर आयीं अंखिया

मेरे बालों को सहलाया था

माथा चूम दुलराया था

सुनती हूँ जब उनकी बतिया

व्यकुल हो गयी मेरी निदिया

मन अधीर हो जाता है

पापा को बहुत बुलाता है

पर खुश देख सखी को

हल्का…

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Added by Meena Pathak on August 7, 2014 at 6:45pm — 17 Comments

दोहे - मीना पाठक

होते जो बहुरूपिया, मिले न उनकी थाह |
मन में अंतरघात  है, सुर है मधुर अथाह ||

गीली लकड़ी की तरह, सुलगी वो दिन रात |
सिसक-सिसक कर जल मुई,हृदय वेदना घात ||

.

जीवन के दिन चार हैं, नेक करें कुछ काज 
अंत समय कब हो निकट,नहीं पता कल आज ||

किस्मत में जो था मिला, सर फोड़े क्यों रोय |
पूर्व जन्म का कर्म है, अब रोये क्या होय ||

मीना पाठक 
मौलिक अप्रकाशित

Added by Meena Pathak on August 2, 2014 at 3:30pm — 21 Comments

हाइकू

अहंकार ना

कभी आ जाये हमें

दिन न आये |

 

मनमोहन

छेड़े बंसी की तान

झूमती आऊं |

 

तनहा तुम

देगा न कोई साथ

खयाल रहे |

प्रकृति हमें

देती सब संपदा

लगाएं वृक्ष |

 

समेट रही

आँचल में अपने

पुष्प बिखरे |

         

अजनबी हम

चलते रहे साथ

इक दूजे के |

 

माता का हाथ

रहे सदैव माथ 

धन्य जीवन |

 

पारिजात…

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Added by Meena Pathak on June 30, 2014 at 5:24pm — 17 Comments

दोहे --मीना पाठक

हे भगवन वर दीजिए, रहे सुखी संसार |
घर परिवार समाज पे, बरसे कृपा अपार ||


दीन दुखी कोई न हो, ना सूखे की मार |
अम्बर बरसे प्रेम से, भरे अन्न भण्डार ||

कृपा करो हे शारदे, बढ़े कलम की धार |
अक्षर चमके दूर से, शब्द मिले भरमार ||

बेटी सदन की लक्ष्मी, मिले उसे सम्मान |
रोती जिस घर में बहू, होती विपत निधान ||

मीना पाठक 
मौलिक अप्रकाशित 

(दोहों पर एक छोटा सा प्रयास है )

Added by Meena Pathak on June 25, 2014 at 12:00pm — 27 Comments

कुण्डलिया छन्द -- (पहला प्रयास )

लग कर छाती से हुए, बडे और बलवान
निज जननी के सामने, ठाडे सीना तान
ठाडे सीना तान , लाज आये ना उनको
बेशर्मी ली लाद , न भाये अपने मन को
आहत है माँ खूब, दुखी रातों में जगकर
चूसे मां का खून , पले जो छाती लगकर ||

मीना पाठक 
मौलिक अप्रकाशित 

Added by Meena Pathak on June 21, 2014 at 11:13pm — 17 Comments

चलो एक वृक्ष लगाएँ !

चलो एक वृक्ष लगाएं

करें पुण्य का काम

जो दे हम सब को

जीवन भर आराम

चलो एक वृक्ष लगाएं |



धरती माँ का गहना है ये

है ये उनका रूप श्रृंगार

पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा

देता हमको जीवन दान

चलो एक वृक्ष लगाएं |



बरगद, पीपल, नीम, पाकड़

तुलसी, अक्षय, पारिजात

ये सब है उपहार प्रकृति का

मिला है सबको एक समान

चलो एक वृक्ष लगाएं |



जल का संग्रह करना है अब

सोच लें गर हम सब इक बार

वर्षा जल संचित कर के हम…

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Added by Meena Pathak on June 20, 2014 at 8:30am — 13 Comments

मेरे लाल भूल न जाना ये बात !!

मेरे बच्चे !!

खुश रहो तुम हरदम

न आये जीवन में तुम्हारे कोई गम

हो माँ शारदे की अनुकम्पा

भरपूर हो स्वास्थ, संपदा,

पर मेरे बच्चे, याद रखना हमेशा

जीवन में एक अच्छा इंसान बनना

साथ तुम्हारे चले जो जीवन पथ पर

करना उसका भी आदर

बहे न कभी तुम्हारे कारण

उसकी आँख का काजल,

करना न तुम कभी प्रकृति का दोहन

लेना उससे उतना ही जितनी हो जरुरत

अंत में है मेरा आशीर्वाद !

घर-परिवार, समाज, राष्ट्र

हर जगह हो तुम्हारा ऊँचा नाम

मेरे लाल…

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Added by Meena Pathak on June 11, 2014 at 1:59am — 19 Comments

नदी

         

वो नदी जो गिरि

कन्दराओं से निकल

पत्थरों के बीच से

बनाती राह

 

कितनो की मैल धोते

कितने शव आँचल मे लपेटे

अन्दर कोलाहल समेटे

अपने पथ पर,

 

कोई पत्थर मार

सीना चीर देता 

कोई भारी चप्पुओं से

छाती पर करता प्रहार

लगातार,

 

सब सहती हुई

राह दिखाती राही को

तृप्त करती तृषा सब की

अग्रसर रहती अनवरत

तब तक, जब तक खो न…

Continue

Added by Meena Pathak on June 4, 2014 at 12:58pm — 22 Comments

तांका

सुन री सखी

दो शब्द भी प्रेम के

नही लिखती

चीखें,दर्द कराहें

लिखती हूँ प्रेम से
|



उनकी बात

कम नही सजा से

तुम्हारे साथ

बिताये हुए पल

सखी कैसे कहूँ मै
|



जीवन मेला

लिए रिश्तों का रेला

जाना था दूर

रह गया अकेला

नयनो में अन्धेरा
|…

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Added by Meena Pathak on May 27, 2014 at 11:00pm — 15 Comments

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