कलावती देवी को प्राइमरी शिक्षिका के पद से सेवानिवृत्त हुए चौदह पन्द्रह वर्ष बीत चुके थे | पति का देहांत हो गया था और वह अपने बेटे के साथ रहती थीं | अकेलेपन और अवहेलना ने उनको चिड़ाचिड़ा बना दिया था | कान से कम सुनाई देता था इस लिए खुद भी तेज आवाज में बोलती थीं, ऐसा कि पूरा मोहल्ला सुनता | बाहर बैठ कर अखबार और अध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ना यही उनकी दिनचर्या थी | सास-बहू का जैसे सांप छछूंदर सा बैर था, ना तो बहू उनका ख्याल रखती ना ही वह बहू पर तंज कसने का कोई मौका छोड़तीं | बहू उनका खाना निकाल कर रख…
ContinueAdded by Meena Pathak on September 13, 2016 at 3:30pm — 6 Comments
चारो तरफ से पानी..पानी..पानी की आवाज सुनाई दे रही है | जिधर देखो उधर पानी के लिए लम्बी कतारें व पानी के लिए जूझते लोग, पानी ढोते टैंकर से ले कर ट्रेन तक दिखाई दे रहे हैं | हैण्डपम्प, कुँए सूख गए हैं और तालाब अब रहे नहीं, उस पर कंक्रीट के जंगल खड़े कर दिए गए हैं | पानी के लिए चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है | देश का रीढ़ किसान आस भरी नजरों से आसमान की ओर देख रहा है | प्यास से घरती का कलेजा फट रहा है | विकाश के नाम पर वन प्रदेश खत्म होते जा रहे हैं, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है क्यों की हम…
ContinueAdded by Meena Pathak on June 9, 2016 at 5:47pm — 4 Comments
Added by Meena Pathak on May 14, 2016 at 8:54am — 3 Comments
सुनो भैया !
कहीं मन नहीं लगता
जिधर देखती हूँ
तुम ही दिखाई देते हो
कभी आँगन में
माँ के साथ बैठे हुए, कभी
द्वार पर माँ के साथ
मन की बात करते हुए
मै जब भी आती थी
माँ के साथ-साथ तुम्हारे चेहरे पर भी
चमक आ जाती थी
माँ के आँचल की छाँव में
हम दोनों बचपन की यादें
याद कर खुश होते
और माँ भी युवा हो जाती थी
दिन कैसे बीत जाते पता ही नहीं चलता
अब वही घर है वही आँगन
पर ना तुम हो ना माँ…
Added by Meena Pathak on August 29, 2015 at 9:30am — 4 Comments
मनवा गाये, मनवा गाये,
मोरा मनवा गये रे
इक गौरैया घर में आई
चुन-चुन तिनका नीड़ बनायी
किया है उसने प्रियतम संग फिर
प्रेम सगाई रे
मनवा गाये मनवा गाये ................
इत्-उत् मटक-मटक दिखलाती
पिया को अपने खूब रिझाती
नित अठखेलियाँ करते दोनों
ज्यूँ भँवर बौराई रे
मनवा गाये ..................................
इक दूजे रंग रंगने लगे थे
प्रणय निवेदन करने लगे थे
आने को थी संतति उनकी
हुए सुखारे रे…
Added by Meena Pathak on July 7, 2015 at 10:05pm — 7 Comments
व्यथित है पतितपावनी
अपनी दशा पर आज
प्रश्न पूछती यही सबसे हजार बार
की है किसने दुर्गति ये
कौन है इसका जिम्मेदार ?
राजा, रंक हो या संत
दिया सबको समान अधिकार
सिंचित कर धरा को
भरा संपदा जिसने अपार
विष भर उसकी रगों में फिर
धकेला किसने उसे मृत्यु के द्वार ?
स्नान आचमन से जिसके देव प्रशन्न होते हैं
मुख में इक बूँद ले लोग
स्वर्ग गमन करते हैं
आँचल में उसी के शवों को छुपा
ढेरों मैल बहाया है
दामन पर…
Added by Meena Pathak on March 20, 2015 at 3:24pm — 18 Comments
सुन री सखी फिर फागुन आयो
याद पिया की बहुत रुलायो
इत उत डोलूँ, भेद ना खोलूँ
बैरन नैना भरि-भरि आयो
सुन री सखी फिर ........
जब से गये परदेश पिया जी
भेजे न इक संदेश जिया की
इक-इक पलछिन गिन के बितायो
सुन री सखी फिर ........
ननदी हँसती जिठनी हँसती
दे ताली देवरनियो हँसती
सौतनिया संग पिया भरमायो
सुन री सखी फिर .....
खूब अबीर गुलाल उड़ायें
प्रेम रंग, सब रंग इतराएँ
बिरहा की अगनी ने मोहे जलायो
का पिया ने मोहे,…
Added by Meena Pathak on March 5, 2015 at 11:42pm — 10 Comments
सुन्दर शय्या
अधमुँदी सी आँखे
एक लम्बी सांस
एकांत वास
सोच के तार
अतीत मे जा
जिंदगी की किताब
खोली जो इक बार
पन्ना- दर- पन्ना
धोखा, छल, आघात
कभी भावुकता तो
कभी अज्ञानता
भरे निर्णय,
कभी विवशता
रिश्ते निभाने की
तो कभी मजबूरी
सामाजिकता की,
जीवन की लम्बी डगर
पग-पग अवरोध,
बावजूद, बढ़ती गई वो
कदम-कदम
लड़खड़ाती,संभलती
तपन दिनकर की सहती,
चढती गई
हर चढाई
मिले…
Added by Meena Pathak on December 9, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
ऐ चाँद !
पूजा तुझे वर्षों
हल्दी,कुमकुम,
अक्षत,रोली,पुष्प,
धूप दीप, नैवेद्य,
करती रही अर्पण
आस ये कि तू
अभिसिंचित करेगा
अपनी शीतल रश्मियों से
प्रेम की अनुभूतियों से
दूर कर देगा मेरे
प्रणय की प्रत्येक विसंगतियों से
पर यह क्या किया .....
सब कुछ बदल दिया !
तू उगलता रहा
अपनी चाँदनी में अदृश्य अंगारे
सुलगती रही जीवन की लहरें
झुलसा- झुलसा तन-मन
अंतरमन का हाहाकार लिए
अब तू ही बता
तुझे कैसे पूजूँ अब…
Added by Meena Pathak on October 11, 2014 at 1:00pm — 10 Comments
बूँदे बरसे
घनश्याम ना आये
मन तरसे
अद्भुत बेला
नदियाँ उफनाईं
पानी का रेला
कोयल गाये
बरसे छम छम
मन को भाये
स्वर्ग धरा का
हाहाकार मचाये
नद मन का
गौरैया आई
उपवन महका
बदरी छायी
व्याकुल धरा
तृप्त हुई जल से
आँचल हरा
********************
मीना पाठक
मैलिक /अप्रकाशित
Added by Meena Pathak on September 18, 2014 at 7:19pm — 6 Comments
ताप प्रचण्ड
उफनाई नदियाँ
तपता भादों |
पथिक भूला
अंतर्मन व्यथित
तिमिर घना |
पथ ना सूझे
पिए नित गरल
कंठ भुजंग |
अल्हड़ नदी
मदमस्त लहरें
नईया डोले |
भजन राम
बसे छवि मन में
नित निहारू |
मनमोहिनी
चंदा सा मुख देख
खुशी मन में |
मीना पाठक
मौलिक /अप्रकाशित
Added by Meena Pathak on August 23, 2014 at 1:45pm — 25 Comments
नित बैठी रहती हूँ उदास
हर पल आती पापा की याद
सावन में सखियाँ जब
ले कर बायना आती हैं
नैहर की चीजें दिखा-दिखा
इतराती हैं,
तब भर आता है दिल मेरा
पापा की कमी रुलाती है
कहती हैं जब, वो सब सखियाँ
पापा की भर आयीं अंखिया
मेरे बालों को सहलाया था
माथा चूम दुलराया था
सुनती हूँ जब उनकी बतिया
व्यकुल हो गयी मेरी निदिया
मन अधीर हो जाता है
पापा को बहुत बुलाता है
पर खुश देख सखी को
हल्का…
ContinueAdded by Meena Pathak on August 7, 2014 at 6:45pm — 17 Comments
होते जो बहुरूपिया, मिले न उनकी थाह |
मन में अंतरघात है, सुर है मधुर अथाह ||
गीली लकड़ी की तरह, सुलगी वो दिन रात |
सिसक-सिसक कर जल मुई,हृदय वेदना घात ||
.
जीवन के दिन चार हैं, नेक करें कुछ काज
अंत समय कब हो निकट,नहीं पता कल आज ||
किस्मत में जो था मिला, सर फोड़े क्यों रोय |
पूर्व जन्म का कर्म है, अब रोये क्या होय ||
मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित
Added by Meena Pathak on August 2, 2014 at 3:30pm — 21 Comments
अहंकार ना
कभी आ जाये हमें
दिन न आये |
मनमोहन
छेड़े बंसी की तान
झूमती आऊं |
तनहा तुम
देगा न कोई साथ
खयाल रहे |
प्रकृति हमें
देती सब संपदा
लगाएं वृक्ष |
समेट रही
आँचल में अपने
पुष्प बिखरे |
अजनबी हम
चलते रहे साथ
इक दूजे के |
माता का हाथ
रहे सदैव माथ
धन्य जीवन |
पारिजात…
ContinueAdded by Meena Pathak on June 30, 2014 at 5:24pm — 17 Comments
हे भगवन वर दीजिए, रहे सुखी संसार |
घर परिवार समाज पे, बरसे कृपा अपार ||
दीन दुखी कोई न हो, ना सूखे की मार |
अम्बर बरसे प्रेम से, भरे अन्न भण्डार ||
कृपा करो हे शारदे, बढ़े कलम की धार |
अक्षर चमके दूर से, शब्द मिले भरमार ||
बेटी सदन की लक्ष्मी, मिले उसे सम्मान |
रोती जिस घर में बहू, होती विपत निधान ||
मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित
(दोहों पर एक छोटा सा प्रयास है )
Added by Meena Pathak on June 25, 2014 at 12:00pm — 27 Comments
लग कर छाती से हुए, बडे और बलवान
निज जननी के सामने, ठाडे सीना तान
ठाडे सीना तान , लाज आये ना उनको
बेशर्मी ली लाद , न भाये अपने मन को
आहत है माँ खूब, दुखी रातों में जगकर
चूसे मां का खून , पले जो छाती लगकर ||
मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित
Added by Meena Pathak on June 21, 2014 at 11:13pm — 17 Comments
चलो एक वृक्ष लगाएं
करें पुण्य का काम
जो दे हम सब को
जीवन भर आराम
चलो एक वृक्ष लगाएं |
धरती माँ का गहना है ये
है ये उनका रूप श्रृंगार
पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा
देता हमको जीवन दान
चलो एक वृक्ष लगाएं |
बरगद, पीपल, नीम, पाकड़
तुलसी, अक्षय, पारिजात
ये सब है उपहार प्रकृति का
मिला है सबको एक समान
चलो एक वृक्ष लगाएं |
जल का संग्रह करना है अब
सोच लें गर हम सब इक बार
वर्षा जल संचित कर के हम…
Added by Meena Pathak on June 20, 2014 at 8:30am — 13 Comments
मेरे बच्चे !!
खुश रहो तुम हरदम
न आये जीवन में तुम्हारे कोई गम
हो माँ शारदे की अनुकम्पा
भरपूर हो स्वास्थ, संपदा,
पर मेरे बच्चे, याद रखना हमेशा
जीवन में एक अच्छा इंसान बनना
साथ तुम्हारे चले जो जीवन पथ पर
करना उसका भी आदर
बहे न कभी तुम्हारे कारण
उसकी आँख का काजल,
करना न तुम कभी प्रकृति का दोहन
लेना उससे उतना ही जितनी हो जरुरत
अंत में है मेरा आशीर्वाद !
घर-परिवार, समाज, राष्ट्र
हर जगह हो तुम्हारा ऊँचा नाम
मेरे लाल…
Added by Meena Pathak on June 11, 2014 at 1:59am — 19 Comments
वो नदी जो गिरि
कन्दराओं से निकल
पत्थरों के बीच से
बनाती राह
कितनो की मैल धोते
कितने शव आँचल मे लपेटे
अन्दर कोलाहल समेटे
अपने पथ पर,
कोई पत्थर मार
सीना चीर देता
कोई भारी चप्पुओं से
छाती पर करता प्रहार
लगातार,
सब सहती हुई
राह दिखाती राही को
तृप्त करती तृषा सब की
अग्रसर रहती अनवरत
तब तक, जब तक खो न…
ContinueAdded by Meena Pathak on June 4, 2014 at 12:58pm — 22 Comments
सुन री सखी
दो शब्द भी प्रेम के
नही लिखती
चीखें,दर्द कराहें
लिखती हूँ प्रेम से |
उनकी बात
कम नही सजा से
तुम्हारे साथ
बिताये हुए पल
सखी कैसे कहूँ मै |
जीवन मेला
लिए रिश्तों का रेला
जाना था दूर
रह गया अकेला
नयनो में अन्धेरा |…
Added by Meena Pathak on May 27, 2014 at 11:00pm — 15 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |