For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कभी आत्ममन्थन करना -- मीना पाठक

दिए दिन, महीने, बरस
जीवन के अनमोल पल
तुम्हारी तल्खियों से
आहत जख्मों को छुपा
मुस्कान की सौगात दी
कोमल भावनाएं
इच्छाओं की आहूति दी
कायम रखी
तुम्हारी मिल्कियत
वजूद को मिटा कर
फिर भी
तुम छीनते रहे मुझसे
मेरे हिस्से का वक्त
तुम्हें मंजूर नही
मेरा खुद के लिए
जीना
तृप्त ना हो सकीं
तुम्हारी इच्छाएं
छीन लेना चाहते हो
मेरा आस्तित्व
मेरी अभिलाषाएं
मेरा सब कुछ
हक से लेने वाले
कभी सोचा
तुमने मुझे क्या दिया ?
कभी आत्ममन्थन करना !!   

मीना पाठक
 
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 699

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 30, 2013 at 10:19am

तुम छीनते रहे मुझसे 
मेरे हिस्से का वक्त 
तुम्हें मंजूर नही 
मेरा खुद के लिए
जीना 

छीन लेना चाहते हो 
मेरा आस्तित्व 
मेरी अभिलाषाएं
मेरा सब कुछ .

....................पर मैं हार नहीं सकती, क्योंकि "औरत हूँ मैं "

गहन संवेदनाओं की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति पर बहुत बहुत बधाई आदरणीया मीना जी ...बहुत सुन्दर 

Comment by Meena Pathak on October 25, 2013 at 2:33pm

आदरणीय विजय मिश्र जी रचना को इतनी गहराई से समझने के लिए हृदयतल से आभार 

Comment by Meena Pathak on October 25, 2013 at 2:31pm

परम आदरणीय विजय निकोर जी, सादर प्रणाम 
आप का स्नेह मेरी रचना पर टिप्पणी रूप में यूँ ही मिलता रहे , सादर आभार 

Comment by Meena Pathak on October 25, 2013 at 2:29pm

आदरणीय सुशील जोशी जी हार्दिक आभार स्वीकारें 

Comment by Meena Pathak on October 25, 2013 at 2:28pm

प्रिय राम शिरोमणि जी बहुत आभार 

Comment by Meena Pathak on October 25, 2013 at 2:28pm

आदरणीय  आशुतोष जी बहुत बहुत आभार स्वीकारें | सादर 

Comment by विजय मिश्र on October 25, 2013 at 12:25pm
प्रबुद्धों की निजता का हनन उनके आत्मा पर प्रहार करती है , बारम्बार अपने अस्तित्व के मूल्याँकन को बिवश करती है ,कुरेदती है मन को जब अंतर्मन की तृषा को मित्र न समझे . सबकुछ बेमानी लगने लगता है . कुछ इन्हीं भावों को मेरी नजरों ने यहाँ पाया .साधुवाद मीनाजी एक भावभरी रचना केलिए .
Comment by vijay nikore on October 25, 2013 at 12:15pm

//मेरा सब कुछ
हक से लेने वाले
कभी सोचा
तुमने मुझे क्या दिया ?//

बहुत ही सुन्दर रचना है, बधाई।

Comment by Sushil.Joshi on October 25, 2013 at 4:35am

भावों को बखूबी पिरोया है आपने इस रचना में आ0 मीना जी...... बधाई हो...

Comment by ram shiromani pathak on October 24, 2013 at 9:29pm

आदरणीया मीना जी,बहुर सुन्दर  अभिव्यक्ति !!! आपको बधाई !!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service