ऐ चाँद !
पूजा तुझे वर्षों
हल्दी,कुमकुम,
अक्षत,रोली,पुष्प,
धूप दीप, नैवेद्य,
करती रही अर्पण
आस ये कि तू
अभिसिंचित करेगा
अपनी शीतल रश्मियों से
प्रेम की अनुभूतियों से
दूर कर देगा मेरे
प्रणय की प्रत्येक विसंगतियों से
पर यह क्या किया .....
सब कुछ बदल दिया !
तू उगलता रहा
अपनी चाँदनी में अदृश्य अंगारे
सुलगती रही जीवन की लहरें
झुलसा- झुलसा तन-मन
अंतरमन का हाहाकार लिए
अब तू ही बता
तुझे कैसे पूजूँ अब .....
बता ना चाँद ??
बता दे !!
मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार प्रिय राम
आदरणीय जितेन्द्र जी ..बहुत बहुत आभार
आदरणीय केवल जी , बहुत बहुत आभार स्वीकारें
आभार आदरणीया सविता जी
रचना आप के दिल तक पहुँची लिखना सफल हुआ | बहुत बहुत आभार आ० राजेश जी
सुंदर रचना
सुंदर रचना किन्तु नकारात्मक भाव ? निशब्द हूँ आदरणीया मीना दीदी
बहुत ही सुन्दर, सामयिक और सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें। आ0 मीना जी,
आज के दिन चाँद के प्रति ऐसे नकारात्मक भाव ???दिल को झकझोर गई ये रचना . मीना जी |
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