ताप प्रचण्ड
उफनाई नदियाँ
तपता भादों |
पथिक भूला
अंतर्मन व्यथित
तिमिर घना |
पथ ना सूझे
पिए नित गरल
कंठ भुजंग |
अल्हड़ नदी
मदमस्त लहरें
नईया डोले |
भजन राम
बसे छवि मन में
नित निहारू |
मनमोहिनी
चंदा सा मुख देख
खुशी मन में |
मीना पाठक
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
आदरणीया प्राची जी मुझे जरा भी मालूम नही था कि हायकू में भी तुकांतता का निर्वहन हो सकता है , अगली बार जरूर प्रयास करूँगी | हायकू सराहने के लिए दिल से आभार स्वीकारें | सादर
आदरणीय गिरिराज जी हायकू सराहने हेतु सादर आभार स्वीकारें
प्रिय महिमा स्नेहिल आभार
आदरणीया राजेश कुमारी जी आप के स्नेह से अभिभूत हूँ आशा करती हूँ ये स्नेह हमेशा मिलता रहेगा | सादर आभार स्वीकारें
आदरणीया सरिता जी बहुत बहुत आभार स्वीकारें
बहुत खूबसूरत हायकू कहे हैं आ० मीना पाठक जी
इस गंभीर प्रयास पर मेरी हार्दिक बधाई... हायकू प्रयास में यदि पहली और तीसरी पंक्ति में तुकांतता का निर्वहन भी हो तो शिल्प में चार चाँद लग जाते हैं.... अगले हायकू प्रयास में इसे भी समाहित करके देखिएगा
शुभकामनाएं
आदरणीया मीना जी , सुन्दर हाइकू के लिए बधाई |
पथिक भूला
अंतर्मन व्यथित
तिमिर घना |
पथ ना सूझे
पिए नित गरल
कंठ भुजंग |
अल्हड़ नदी
मदमस्त लहरें
नईया डोले |..... बहुत बढ़िया हायकु आदरणीय मीना दी अभूत -२ बधाई
पथिक भूला
अंतर्मन व्यथित
तिमिर घना |-----बहुत सुन्दर
अल्हड़ नदी
मदमस्त लहरें
नईया डोले |---क्या बात
भजन राम -----राम भजन कर लें तो कैसा रहे
बसे छवि मन में
नित निहारू |----भक्तिमय ...मन में बस गया
सभी हाइकु बहुत सुन्दर हैं बधाई स्वीकारें प्रिय मीना जी .
बहुत सुंदर ,बधाई मीना जी
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