सुन री सखी फिर फागुन आयो
याद पिया की बहुत रुलायो
इत उत डोलूँ, भेद ना खोलूँ
बैरन नैना भरि-भरि आयो
सुन री सखी फिर ........
जब से गये परदेश पिया जी
भेजे न इक संदेश जिया की
इक-इक पलछिन गिन के बितायो
सुन री सखी फिर ........
ननदी हँसती जिठनी हँसती
दे ताली देवरनियो हँसती
सौतनिया संग पिया भरमायो
सुन री सखी फिर .....
खूब अबीर गुलाल उड़ायें
प्रेम रंग, सब रंग इतराएँ
बिरहा की अगनी ने मोहे जलायो
का पिया ने मोहे, दिया बिसरायो
सुन री सखी फिर ......
खेलूँगीं ना अब मै होरी
रहिहे सदा ये चूनर कोरी
अब हिय अपने श्याम बसायो
सुन री सखी .......
साँचो अब फागुन आयो ।।
मीना पाठक
मौलिक अप्रकाशित
Comment
प्रिय कल्पना ..सस्नेह आभार
आदरणीय हरी प्रकाश जी रचना पर सराहना हेतु बहुत बहुत आभार स्वीकारें | सादर
बहुत बहुत आभार प्रिय जितेन्द्र | सस्नेह
मीना दी आप ने मनोहारी चित्र खींचा है इस गीत में आप को बहुत बधाई
आदरणीया मीना पाठक जी ,बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ,बधाई प्रेषित ! सादर
होली पर विरह वेदना को बहुत सुंदर भाव दिए आपने, आदरणीया मीना दीदी. बहुत-बहुत बधाई
बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायन जी | सादर
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय गोपाल नारायण जी | सादर
बहुत सुंदर रचना बधाई आपको , एवं होली की हार्दिक शुभकामनायें ।
आ० मीना जी
अच्छी रचना है i भावपूर्ण i
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