मनवा गाये, मनवा गाये,
मोरा मनवा गये रे
इक गौरैया घर में आई
चुन-चुन तिनका नीड़ बनायी
किया है उसने प्रियतम संग फिर
प्रेम सगाई रे
मनवा गाये मनवा गाये ................
इत्-उत् मटक-मटक दिखलाती
पिया को अपने खूब रिझाती
नित अठखेलियाँ करते दोनों
ज्यूँ भँवर बौराई रे
मनवा गाये ..................................
इक दूजे रंग रंगने लगे थे
प्रणय निवेदन करने लगे थे
आने को थी संतति उनकी
हुए सुखारे रे
मनवा गाये .............................
साँझ-सकारे शोर मचाते
घर में इधर उधर मंडराते
उनकी खुशियों में थी मै भी
मन से शामिल रे
मनवा गाये ........................
गौरैया जब-तब ही निकलती
हो गइ थी अब उसकी जचकी
एक संग फिर कई चूजों ने
अलख जाई रे
मनवा गाये ..................
घर मेरा अब चहक उठा था
मन का कोना महक उठा था
देख कर उसे ममता लुटाते
मै मुस्काई रे
मनवा गाये .........................
खा पी कर सब पुष्ट हुए थे
पंख उनके बलिष्ठ हुए थे
भरी उड़ान फिर ऐसी सबने
देखा ना मुड़ के रे
कुछ ना भाये, कुछ ना भाये, अब तो कुछ ना भाये रे........................
थी गौरैया जितनी आकुल
मेरा मन था उतना व्याकुल
उसकी पीर ने मेरी भी थी,
पीर बधाई रे
रोयें दोनों, रोयें दोनों, रोयें दोनों माँएं रे ..................
मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आपका गीत free verse libre है . इसमे समीक्षा की गुंजाईश कम होती है . शिल्प की अपेक्षा भाव की प्रमुखता होती है और गीत में भाव तो हैं ही . सादर .
बहुत बहुत आभार आदरणीया कांता जी | सादर
मार्गदर्शन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश जी | सादर
आदरणीय धर्मेन्द्र जी बहुत बहुत आभार
आदरणीया मीना जी, सुन्दर गीत की प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई
गीत में तुकांत टेक होता तो गीत का आनंद बहुगुणा हो जाता.
टंकण त्रुटी और तुकांत की दृष्टि से रचना पर एक बार पुनः ध्यान निवेदित है.
सादर
अच्छा गीत है आदरणीया मीना जी, दाद कुबूल करें
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