For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 
सुनो भैया !

कहीं मन नहीं लगता
जिधर देखती हूँ
तुम ही दिखाई देते हो
कभी आँगन में
माँ के साथ बैठे हुए, कभी
द्वार पर माँ के साथ
मन की बात करते हुए

मै जब भी आती थी
माँ के साथ-साथ तुम्हारे चेहरे पर भी
चमक आ जाती थी
माँ के आँचल की छाँव में
हम दोनों बचपन की यादें
याद कर खुश होते
और माँ भी युवा हो जाती थी   
दिन कैसे बीत जाते पता ही नहीं चलता

अब वही घर है वही आँगन
पर ना तुम हो ना माँ
आँगन उदास, द्वार उजाड़
ना माँ की ममता ना भाई का स्नेह
वीरान सा है ये मन
एक-एक पल काटे नहीं कटता
तुम्हारे बिना ये घर, घर नहीं लगता

जाने के बाद माँ के
हम रो भी ना पाए अंकवार दे
कह भी ना पाए ‘हम हैं ना’
न कर सके प्रतीक्षा मेरी
ख्याल बहन का दिल से निकाल  
चल दिए तुम माँ की उँगली थाम  

आज राखी है, बहने अपने मायके जायेंगी
भाई की कलाई को राखी से सजाएँगी
मायके में रह कर भी
मेरी राखी सूनी ही रह जायेगी
सोचा था   
इस बार अपने हाथों से
कलाई पर तुम्हारे राखी बांधूंगी
जीवन के झंझावातों से दूर
संग तुम्हारे कुछ दिन बिताऊँगी
पर विधि को नहीं था मंजूर

आज ढूँढती हूँ तुम्हें उसी आँगन में
द्वार पर, देख रही हूँ राह
शायद तुम लौट कर आओगे
जानती हूँ ये कोरा भ्रम है मेरा
तुम अब कभी लौट कर नहीं आओगे

मेरे भईया !
तुम्हारे बिन अब ना राखी है
ना राखी का त्योहार
हृदय में तुम्हारी छवि
और आँखों में आँसुओं का सैलाब ||

मौलिक/अप्रकाशित
मीना पाठक   
 
(माँ के लिए अभी-अभी लिखी एक रचना जिन्होंने इसी २० ता० को अपनी माँ और उसी के तीन दिन बाद आपने छोटे भाई को खो दिया)

 

 
 
 
  
 
 

  

Views: 505

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on September 14, 2015 at 8:03pm

जानती हूँ प्रतिभा जी ..बस् भाव ही हैं, शिल्प की तरफ़ उस दिन मेरा ध्यान ही नहीं गया, आप पोस्ट पर कई बार आयीं, बहुत अच्छा लगा ....बहुत बहुत आभार | सादर 

Comment by Meena Pathak on September 14, 2015 at 7:58pm

बहुत बहुत आभार प्रिय शशि जी 

Comment by pratibha pande on September 1, 2015 at 10:10am
मीना जी ,इस रचना पर पहले भी तीन चार बार आ चुकी हूँ ,पर कुछ कह पाने की हिम्मत जुटा नहीं पाई क्योंकि रचनाधर्मिता के ऊपर एक भावुक स्त्री मन है ,आप हौसला बनाये रखेंगी ,ये कामना करती हूँ
Comment by shashi bansal goyal on August 31, 2015 at 7:13pm
अत्यंत भावुक कर देने वाली प्रस्तुति । अंदर तक मन को भिगो गई । ईश्वर उन्हें इस मुश्किल घडी में हौसला रखने का साहस दे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service