सोचती हूँ होती मेरी भी एक बिटिया
पढ़ती वो भी बिन कहे दिल की पतिया
भीगती जब असुअन से मेरी अखियाँ
पूछती माँ क्यूँ भीगी तेरी अखिंयाँ
बनाती बहाना चुभ गया कुछ बिटिया
कहती,समझती हूँ माँ तेरे दिल की बतियाँ !!
काश होती मेरी भी एक बिटिया
वो पढ़ लेती मेरे दिल की पतियाँ
होती मेरी हमसाया,हमराज,सखी
कहती ना कभी ऐसी बतियाँ
उड़ा देती जो मेरी रातों की निंदियाँ
माँ तुममे भी है कुछ कमियाँ !!
मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बिटिया की चाहना में सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई
पर शिल्प की सुगढ़ता के लिए थोड़ा और समय मांगती है यह रचना
सादर.
हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी | सादर
आदरणीया मीना जी , माँ - बेटी के रिश्ते को बहुत अच्छे से बयान किया है आपने , बहुत खूब ॥ आपको बहुत बधाई ॥
"दोनों का अलग-अलग स्थान है".. सच कहा आप ने आ० अन्नपूर्णा जी इनमे से कोई एक ना हो तो परिवार अधूरा ही रहता है :)
सादर आभार आप का
सुंदर अहसास से परिपूर्ण , सच बेटी और बेटा दोनों ही अपना अलग अलग स्थान रखते है । बेटी बिन कहे माँ के दिल की बात समझ लेती है , बेटे बोलने पर । बहुत बधाई आपको मीना जी इस अनुपम रचना के लिए ।
आदरणीय अविनाश जी सादर प्रणाम
रचना सराहने हेतु सादर आभार !
प्रिय जितेन्द्र रचना के भावों को समझने और सराहने के लिए बहुत बहुत आभार
वंदना जी बहुत बहुत आभार
सादर प्रणाम आदरणीय गोपाल नारायण जी , रचना को स्नेह और सराहने के लिए सादर आभार स्वीकारें
आदरणीय संजय मिश्रा जी सादर आभार स्वीकारें
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