कलावती देवी को प्राइमरी शिक्षिका के पद से सेवानिवृत्त हुए चौदह पन्द्रह वर्ष बीत चुके थे | पति का देहांत हो गया था और वह अपने बेटे के साथ रहती थीं | अकेलेपन और अवहेलना ने उनको चिड़ाचिड़ा बना दिया था | कान से कम सुनाई देता था इस लिए खुद भी तेज आवाज में बोलती थीं, ऐसा कि पूरा मोहल्ला सुनता | बाहर बैठ कर अखबार और अध्यात्मिक पुस्तकें पढ़ना यही उनकी दिनचर्या थी | सास-बहू का जैसे सांप छछूंदर सा बैर था, ना तो बहू उनका ख्याल रखती ना ही वह बहू पर तंज कसने का कोई मौका छोड़तीं | बहू उनका खाना निकाल कर रख देती और रसोई में ताला डाल कर ऊपर चली जाती फिर सास को क्या चाहिए, क्या नहीं बहू को कोई सरोकार नहीं था, बच्चों को भी अपने ही रंग में रंग रखा था उसने |
उस दिन जब वह पूजा-पाठ कर के बाहर निकलने लगीं, तभी गेट के पास रखे कूड़ेदान से उनकी धोती छू गयी, बस फिर क्या ! वह शुरू हो गयी बहू पर -
“चार-चार बच्चे जने पर तमीज आजउ ना आई..अबही तक कूड़ा हियन डरो है ..दुपहर हुयिबे को आई..ना जाने महतारी-बाप का सिखाउत हैं..अपना जऊन लच्छन की है.. बोई अपने बच्चन का सीखाउत है..जब से जे घर में आई तब से घर की बरकत चली गयी..हमाओ सीधो-साधो लला फँस गओ बा के जाल में ..|”
बाहर बैठ कर कलावती देवी शुरू हो गयी थीं और पूरा मुहल्ला सुन् रहा था | खूब बोल लेने के बाद वह फिर से अपनी अध्यात्मिक पुस्तक खोल कर पढ़ने लगीं | जैसे ही वह कथा के रस में डूबने लगीं अचानक उनके ऊपर धूल, कागज, जूठन, सब्जियों के छिलके आदि गिरने लगे | वह चौंक पड़ीं | उन्होंने जैसे ही ये देखने के लिए कि ये क्या हुआ ? अपना चेहरा ऊपर उठाया, उनका मुंह खुला का खुला रह गया, वह जहाँ बैठी थीं वहीं जड़ हो गयीं, अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ, उनकी सारी बोलती बंद हो गयी, गले से आवाज नहीं फूट रही थी, ह्रदय वेदना से भर उठा, दोनों आँखें पहले भीगीं फिर छलक पड़ीं | ये तो उनके ही कुल का दीपक उनका बड़ा पोता, जो कूड़ेदान का सारा कूड़ा उनके ऊपर उलट कर जा चुका था | पीछे से बहू ने भड़ाक से गेट बंद कर लिया |
मौलिक/अप्रकाशित
मीना पाठक
Comment
बहुत आभार आदरणीय सुशील जी | सादर
आदरणीया मीना जी एक मार्मिक यथार्थ और एक मार्मिक वर्तमान को जीती इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई।
रचना की सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया राजेश जी
अच्छी लघु कथा लिखी है मीना जी ये सास बहु का रिश्ता यूं ही बदनाम नहीं हुआ कुछ घरों में कारनामे ऐसे ही होते हैं |बहुत बहुत बधाई आपको |
रचना की सराहना हेतु बहुत-बहुत आभार आदरणीय कबीर जी ..
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