फल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, अगरबत्ती, कर्पूर
मिठाई, पूजा, आरती, दक्षिणा
चुपचाप ये सबकुछ ग्रहण कर लेगा
अगर देना चाहोगे जानवरों या इंसानों की बलि
उसे भी ये चुपचाप स्वीकार कर लेगा
पर जब माँ बनते हुए बिगड़ जाएगी तुम्हारी बहू या बेटी की हालत
तब उसे छोड़कर किसी बड़े अस्पताल में किसी बड़े आदमी की
बहू या बेटी के सिरहाने डाक्टरों की फ़ौज बनकर खडा हो जाएगा
जब किसी झूठे केस में गिरफ़्तार कर लिया जाएगा तुम्हारा बेटा
तब उसे छोड़कर किसी अमीर बाप के बिगड़े बेटे को बचाने के लिए
वकीलों की फ़ौज बनकर खड़ा हो जाएगा
जब तुम स्वर्ग जाने की आशा में
किसी तरह अपनी जिन्दगी के अंतिम दिन काट रहे होगे
तब ये किसी अमीर बूढ़े के लिए
धरती पर स्वर्ग का इंतजाम कर रहा होगा
ये तुम्हारा ईश्वर नहीं है
तुम्हारा ईश्वर तो कब का मर चुका है
अब जो दुनिया चला रहा है
वो ईश्वर पूँजीवादी है
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद गिरिराज भंडारी जी
बहुत बहुत शुक्रिया annapurna bajpai जी
बहुत बहुत शुक्रिया Akhand Gahmari जी
धन्यवाद Meena Pathak जी
शुक्रिया Shyam Narain Verma जी
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ Arun Srivastava जी
बहुत बहुत शुक्रिया rajesh kumari जी
सच! वर्तमान के ईश्वर का शायद यही रूप है, बहुत बढ़िया रचना आदरणीय धर्मेन्द्र जी, हार्दिक बधाई आपको
समाज की कड़वी सचाई को बयान करती आपकी कविता के लिये बधाई , आदरणीय धर्मेन्द्र भाई !!
ये तुम्हारा ईश्वर नहीं है
तुम्हारा ईश्वर तो कब का मर चुका है
अब जो दुनिया चला रहा है
वो ईश्वर पूँजीवादी है......................... बहुत खूब !!! क्या बात है आ0 अखंड जी कहाँ से इतना गुस्सा ले आए । बहरहाल इस रचना के लिए बहुत बधाई स्वीकारें ।
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