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दिल में फिर 
एक आस जगी है ,
चुनावी मौसम है
और प्यास बड़ी है |
नेता आयेंगे ,
नोट लायेंगे ,
हम तो हैं नालायक ;
फिर से नोट खायेंगे |
वोट करने भी जायेंगे
पर वापस आकर ,
बार बार चिल्लायेंगे
इसने तो कुछ किया नहीं |
अगली बार ,
दूसरे नेता को जिताएंगे
फिर से नोट खायेंगे |
फिर पांच साल के लिए
काल कोठरी में छिप जायेंगे |
 हम तो हैं नालायक
फिर से नोट खायेंगे !
                                    -अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"

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Comment by Akshay Thakur " परब्रह्म " on February 27, 2011 at 6:33pm
Thank You Sharda Ma'am :-)
Comment by Akshay Thakur " परब्रह्म " on February 13, 2011 at 9:21pm
बहुत बहुत धन्यवाद गणेश सर |:-)

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 13, 2011 at 9:16pm

अक्षय जी, बेहद संतुलित रचना और वोट के ठीकेदारों के मुह पर जोरदार लात मारी है आपने, हम सुधरेंगे जग सुधरेगा के सिधांत का पालन करना होगा,

बहरहाल बेहतरीन अभिव्यक्ति पर कोटिश : धन्यवाद, दाद स्वीकार करे |

Comment by Akshay Thakur " परब्रह्म " on February 13, 2011 at 8:52pm
धन्यवाद आशीष भाई | :-)
Comment by आशीष यादव on February 13, 2011 at 8:24pm
बिलकुल सही, सटीक लिखे है भैया| हम दूसरो को दोष देते है की वो काम नहीं कर रहा है, अरे वो काम क्यों करेगा, उसने तो जितने से पहले ही हमें हमारी मजदूरी हमारा इनाम दे दिया है| हमें खुद तैयार रहना चाहिए, अच्छे लोगो को नेता चुनना चाहिए|
इस सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई|
Comment by Akshay Thakur " परब्रह्म " on February 13, 2011 at 4:42pm
धन्यवाद वंदना जी :-)
Comment by Akshay Thakur " परब्रह्म " on February 13, 2011 at 12:17pm
बहुत बहुत धन्यवाद अरुण सर :-)
Comment by Abhinav Arun on February 13, 2011 at 12:09pm

सही बात , बढ़िया व्यंग्य .. सच आज राजनीती कहाँ से कहाँ आ गयी है ... आपने सही फ़रमाया ..

अगली बार ,
दूसरे नेता को जिताएंगे
फिर से नोट खायेंगे |
फिर पांच साल के लिए
काल कोठरी में छिप जायेंगे |
 हम तो हैं नालायक
फिर से नोट खायेंगे !
बधाई करारी रचना के लिये

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