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मास्क वाले चेहरे

मैं अक्सर निकल जाता हूँ भीडभाड गलियों से
रौशनी से जगमग दुकाने मुझे परेशान करती हैं
मुझे परेशां करती है उन लोगों की बकबक
जो बोलना नहीं जानते

 

मै भीड़ नहीं बनना चाहता बाज़ार का
मैं ग्लैमर का चापलूस भी नहीं बनना चाहता
मुझे पसंद नहीं विस्फोटक ठहाके
मै दूर रहता हूँ पहले से तय फैसलों से

 

क्योंकि एकदिन गुजरा था मै भी लोगों के चहेते रास्ते से
और यह देखकर ठगा रह गया की
मेरा पसंदीदा व्यक्ति बदल चूका था
बदल चुकी थी उसकी प्राथमिकताएं
उसका नजरिया, उसके शब्द
उसका लिबास भी

 

लौट आया मैं चुपचाप
भरे मन से निराश होकर
तभी से अकेला ही अच्छा लगता है
अच्छा लगता दूर रहना ऐसे लोगों से
जिन्होंने अपना बदनुमा चेहरा छिपाने को
लगा रखा है सुन्दर सा मास्क। 
 

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Comment

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Comment by Akhileshwar Pandey on February 28, 2011 at 9:50pm

शुक्रिया भाई बागी जी. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 28, 2011 at 8:16pm

मुझे परेशां करती है उन लोगों की बकबक
जो बोलना नहीं जानते...........................

 

क्या बात है , विरोधाभास से भरी पक्तियां , बहुत खूब ,

सुंदर भाव की कविता , बधाई

Comment by Akhileshwar Pandey on February 27, 2011 at 4:45pm
मनोबल बढ़ाने के लिए शुक्रिया वंदना जी

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