शब्दों के जाल में फँस कर उलझ गया हूँ ,
मैं बस शब्द बन कर रह गया हूँ ,
सोचता हूँ निकल जाऊ इस जाल से ,
मगर वो कर नहीं पाता, कारण ?
जब भी कोशिश करता हूँ ,
और भी उलझता ही जाता हूँ ,
पहले बेटा फिर भाई ,
फिर काका बन गया ,
आगे चल कर पति ,
फिर पिता और अब ,
दादा बन गया हूँ ,
अगर अब भी नहीं निकल पाया ,
तो ये मेरी बदनसीबी हैं ,
हे प्रभु बुद्धि दे ,
मेरी सुधि ले ,
कि मैं इस मकड़ जाल से निकल सकूँ ,
और इन शब्द जाल से निकल सकूँ ,
Comment
गुरूजी , आपने जिस शब्द जाल की बात कही है वो दर असल रिश्तों का जाल है.
भावनाएं गलत हों तो शब्द क्या करें. रचना के लिया बधाई.
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