1222-1222-122
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अदावत क्या करे कोई किसी से
परेशां हर कोई जब ज़िन्दगी से
अकीदत आपकी सूरज से लेकिन
हमारी बेरुखी है रौशनी से
पसीना लफ्ज़ बनकर बह रहा है
किसी खामोश बैठी शायरी से
अता जिसको कभी शोहरत नहीं है
कहाँ मिलते है ऐसे आदमी से
सदा सूरज के आगे क्यों सिमटती
किसी ने प्रश्न पूछा चांदनी से
हुकूमत जुल्म किस पर कर रही है
सभी खामोश अपनी बेबसी से
नहीं है कौन तेरा तिश्नकामी
बचा है कौन तेरी तिश्नगी से
जरा मिथिलेश अब दिल से निकालो
मिटाया नाम जिसका डायरी से
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(मौलिक व अप्रकाशित) - © मिथिलेश वामनकर
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Comment
आदरणीय नितिन गोयल जी, ग़ज़ल पर आपकी शिर्कत का शुक्रिया. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. सादर
भाई जी सीखने सिखाने का मंच है सभी एक दूसरे से सीख रहे हैं
आदरणीय वीनस जी आपके आलेख "ग़ज़ल की बातें" पढ़े तो ग़ज़ल कहने का सलीका सुधर गया इसलिए आदरणीय, अरुजी और सर से संबोधित कर रहा हूँ .... जहाँ तक उम्र की बात है तो आपकी उम्र का पता नहीं था (फेसबुक प्रोफाइल अभी देखी तो आज पता चला) .. साहित्य की दुनिया में सीखने की पहली शर्त है नतमस्तक रहना बस उसी कारण सभी को आदरणीय और सर से संबोधित करता हूँ. कुछ सरकारी नौकर हूँ तो आदत से भी लाचार. खैर अरुजी तो आप है ही और आदरणीय भी... मगर भारतीय परम्परा अनुसार उम्र को भी महत्व देते हुए .... आ.वीनस भाई जी संबोधन कर लेता हूँ ... सादर
भाई जी,
न मैं अरूज़ी हूँ, न आदरणीय और न सर
आपसे उम्र में बहुत छोटा हूँ आदर भाव के लिए "वीनस जी" ही बहुती है
सादर
आदरणीय वीनस सर जी आपको ग़ज़ल पसंद आई, लिखना सार्थक हुआ. आप जैसे अरुजी जब दाद देते है तो उत्साह सौ गुना बढ़ जाता है. आपका तहे दिल से शुक्रिया. आभार ...
हुकूमत जुल्म किस पर कर रही है
सभी खामोश अपनी बेबसी से
वाह क्या कहने
आदरणीय प्रतिभा जी आपको रचना पसंद आई ..बहुत अच्छी लगी मेरा सौभाग्य है . इस प्रशंसा के लिए ह्रदय से आभारी हूँ , हार्दिक धन्यवाद
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