मन बच्चा है बहलाने को
मिट्टी के खिलौने बनायें
किसी के सिर पर रखकर चोटी
किसी के माथे तिलक लगायें
किसी के मुँह पर लगा के दाढ़ी
किसी को सुन्दर साड़ी पहनायें
किसी के सिर पर रखकर टोपी
किसी के सिर पगड़ी पहनायें
काश मानव हों मिट्टी के खिलौने
मौला, पंडित ,फादर ,भाई
गूँथ इन्हें सबको मिलायें
मिली जुली इस मिट्टी से फिर
नए नए आकार बनायें
दाढ़ी किसी की चोटी बन जाये
चोटी में दाढ़ी छुपायें
टोपी किसी की पगड़ी बन जाये
पगड़ी में टोपी छुपायें
किसमें कितना कौन छुपा है
कौन बताये? कौन बताये ?
भेदभाव सारे मिट जायें
आओ सच्चा मानव बनायें
इंसानों में इंसानियत जगायें
...................................
मौलिक एवं अप्रकाशित ..
Comment
आदरणीय सोमेश कुमार जी हार्दिक आभार
आदरणीय परी श्लोक जी हार्दिक आभार
आदरणीय मिथिलेश जी .आदरणीय गिरिराज जी हार्दिक आभार
आदरणीय विरेंदर जी शुक्रिया
आदरणीय डॉ. गोपाल जी हार्दिक आभार
शुक्रिया आदरणीय विजय शंकर जी
आदरणीय हरी प्रकाश दूबे जी हार्दिक आभार
अलग अलग चाकों से मिट्टी उठा कर उन्हें एक चाक पर घुमाने और सर्वमान्य रचना को गढ़ने की अदभुत कल्पना पर हार्दिक बधाई |
आदरणीया सरिता जी , बहुत प्यारी कल्पना की है आपने , काश ऐसा हो !! हार्दिक बधाइयाँ ॥
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