तुमने किया छल
भावविभोर विह्वल
जल-थल मन
मन जल-थल !
हर प्रतिमा में ढूंढूँ
बिम्ब तुम्हारे..
अनंतपथ में ढूंढूँ
पदचिन्ह तुम्हारे..
अहा! रहते
तुम सम्मुख सदा..
करते अभिनय नयनों में...
नयनों से ओझल!
तुमने किया छल....
सांझ-सकारे जोहूँ
मै बाट तुम्हारा..
पर सामर्थ्य कहाँ
हृदय में,प्राण में?
भर सकूँ ओज तुम्हारा..
नित्य नए पात्र का
करता मै अभिनय..
फिर भरके तुम
प्राण में अपना उद्दीपन
करते फिर तुम नयन सजल!
तुमने किया छल....
तुमने किया छल
भावविभोर विह्वल
जल-थल मन
मन जल-थल !
‘’मौलिक व अप्रकाशित’’
Comment
आदरणीय shyam narayan जी बहुत बहुत आभार!
भाई महर्षि बहुत बहुत शुक्रिया!सस्नेह!
आदरणीय vijai shanker ज़ी सराहना के लिए बहुत बहुत आभार!
सराहना के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय shyam mathpal जी!
आदरणीय हरी प्रकाश दूबे सरजी!हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत आभार!
आदरणीय गोपाल नरायन सरजी! बहुत बहुत आभार!रचना पर आपकी सराहना प्रेरणा देती है और बेहतर करने को!गुरुवर आपके आशीर्वाद से अनवरत साधनारत हूँ!ऐसी ही अपनी स्नेह,आशीष मुझ पर बनाये रक्खे!
आदरणीय मोहन सेठी सरजी आपकी हौसलाफजाई ने रचना का मान बढ़ा दिया है!बहुत बहुत आभार!
आदरणीय गिरिराज सर आपकी सराहना ने इस रचना में चार चाँद लगा दिए है! बहुत बहुत आभार!सादर!
आदरणीय गणेश जी 'बागी' रचना पर आपकी प्रतिक्रिया देखकर बहुत संबल मिला! इसी प्रकार अपना स्नेह बनाये रखें!सादर!
क्या कहने कृष्ण मिश्रा जी, इस रचना क्रम पर मन आह्लादित है, बहुत बहुत बधाई.
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