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ग़ज़ल : पूँजी की ग्रोथ रेट सवाई हुई तो है

बह्र : 221 2121 1221 212

 

रोटी की रेडियस, जो तिहाई हुई, तो है

पूँजी की ग्रोथ रेट सवाई हुई तो है

 

अपना भी घर जला है तो अब चीखने लगे

ये आग आप ही की लगाई हुई तो है

 

बारिश के इंतजार में सदियाँ गुज़र गईं

महलों के आसपास खुदाई हुई तो है

 

खाली भले है पेट मगर ये भी देखिए

छाती हवा से हम ने फुलाई हुई तो है

 

क्यूँ दर्द बढ़ रहा है मेरा, न्याय ने दवा

ज़ख़्मों के आस पास लगाई हुई तो है

 

वर्षों से इस ज़मीन में कुछ भी नहीं उगा

इसकी लहू से ख़ूब सिंचाई हुई तो है 

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 616

Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2015 at 1:06pm

बहुत बहुत धन्यवाद आ. जवाहर लाल जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2015 at 1:06pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ. आशुतोष जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2015 at 1:06pm

बहुत बहुत शुक्रिया जनाब नज़ील साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2015 at 1:05pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ. सौरभ जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2015 at 1:05pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ. शिज्जू जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2015 at 1:04pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ. गिरिराज भंडारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2015 at 1:03pm

वीनस जी, आप आए, बहार आई। बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2015 at 1:02pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आ. मिथिलेश जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2015 at 1:02pm

बहुत बहुत धन्यवाद आ. विजय शंकर जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 12, 2015 at 1:01pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ. प्राची सिंह जी

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