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तराना इक सुना देना

जनाजा जब उठे मेरा जरा तुम मुस्‍कुरा देना

दिये थे फूल जो तुमको जनाजे पे चढ़ा देना

गिराओ अश्‍क मत अपने बचा कर तुम इन्हें रख लो

चलो जब लाल जोड़े में इन्‍हें तब तुम बहा देना

वफा मेरीअगर तुमको कभी झूठी लगी हो तो

न आये चैन मर कर भी मुझे वो बद्दुआ देना

गलत खुद को समझना मत वफा मैं ही न कर पाया

न मुझ सा बेवफा कोई जमाने को बता देना

समझ लो प्यार में तुम से यही चाहत बची मेरी

कभी तुम कब्र पर आकर तराना इक सुना देना

अखंड गहमरी

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2015 at 8:24am

आदरणीया निधि प्‍ल्‍ास जी आपको नमन

Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2015 at 8:24am

आदरणीय गणेश जी ''वागी जी सुझाव एवं मार्गदर्शन के लिए आपको चरण स्‍पर्श

Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2015 at 8:23am

आदरणीया राजेश कुमारी  जी सुझाव एवं मार्गदर्शन के लिए आपको चरण स्‍पर्श

Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2015 at 8:23am

आदरणीय गुरूवर गिरिराज भंडारी जी सुझाव एवं मार्गदर्शन के लिए आपको चरण स्‍पर्श

Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2015 at 8:22am

आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी आपको नमन

Comment by Akhand Gahmari on April 17, 2015 at 8:22am

आदरणीय मिथिलेस वामनकर जी आपको नमन


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2015 at 5:20pm

वफा मेरीअगर तुमको कभी झूठी लगी हो तो

न आये चैन मर कर भी मुझे ऐसी दुआ तुम बददुआ देना.

अगर ऐसे कहें तो ...क्योंकि दुआ यानी good wish और यहाँ तो Bad Wish है.

गलत खुद को समझना मत वफा मैं ही न कर पाया

नहीं समझो गलत खुद को वफ़ा मैं ही न कर पाया 

न मुझ सा बेवफा कोई जमाने को बता देना

यदि इस्लाह किया मिसरा उला पसंद आए तो रख लीजियेगा.

आदरणीय गहमरी साहब, ग़ज़ल पर इतना उम्दा प्रयास देख मन प्रसन्न है, अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई. 

Comment by Nidhi Agrawal on April 14, 2015 at 3:15pm

आदरणीय अखंड जी...सु.ऊऊ पर्ब .. बहुत ही सुन्दर गजल 

गिराओ अश्‍क मत अपने बचा कर तुम इन्हें रख लो

चलो जब लाल जोड़े में इन्‍हें तब तुम बहा देना

वाह वाह हर शेर कोहिनूर के हीरे की तरह चमक रहा ,, बहुत ही सुन्दर भाव 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 14, 2015 at 10:37am

पहली वाली कमेंट के लिए क्षमा चाहूँगा! कई विंडो ओपन होने के कारण गलती से यहाँ पोस्ट हो गयी!....सुन्दर गज़ल पर आपको ढेरों बधाई आ० अखंड गहमरी जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 14, 2015 at 10:36am

आ० अखंड गहमरी जी ,बहुत मार्मिक ग़ज़ल लिखी है बहुत खूब हार्दिक बधाई .जो बात आ० गिरिराज जी ने कही है वही बात मेरे दिमाग में भी तुरंत आई थी उनका कमेन्ट तो बाद में देखा ..बस वही मेरी भी इस्स्लाह  है.

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