For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( बार बार ) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

ग़ज़ल ( बार बार ) दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

हमनें तो ख्वाव के सहारा पे घर बनाया था

बूटा काँटों का अपनें हाथों से लगाया था

हम रहे फूल की ख्वाहिश में उम्र भर यारो

मेरी हालत पे गुलसितां भी मुस्कुराया था

गम नहीं जलनें का जलाया न हमको गैरों नें

मैं तो खुद आग के शोलों में दौड़ा आया था

नाम 'दीपक' था जले फिर भी हम तो किश्तों में

बार बार अपनों नें जलाया और बुझाया था

दुनियां कहती है ग़ज़ल लिखना नहीं आता मुझको

हमनें लिख डाला जो ज़हन में अपनें आया था

आखरी लम्हों से पूछेंगे कभी फुर्सत में

हमनें क्या खोया ज़िंदगी में और क्या पाया था

यह ग़ज़ल मेरी नहीं,दिल के जख्मों से चुराई है

दोगे इलज़ाम आपको में रुला आया था

बेरुखी इतनी हो जाएगी यह उम्मीद न थी

नग्मा हमनें ही उदासी का गुनगुनाया था

हम थे तन्हा जब रुखसत हुए ,कफन ढूंढते रहे

वो भी हमको न मिला जानें किसने वो चुराया था

बेगुनाही का सबूत जीते जी मिला न उन्हें

बाद जानें के यह उनके हाथ आया था

हमको ख्वावों की हकीकत पे ऐतवार न था

फिर भी ख्वावों को न जानें क्यों आजमाया था

दिल के टुकड़ों को समेटे,चल दिए तन्हा

मैकदे को हमनें अपना ही घर बनाया था

अश्क अपनें भी छलक आए जब हुए रुखसत

आखरी लम्हों में वादा उनका याद आया था

आखरी ख्वाहिश भी न पूछी और जला भी दिया

जैसे मौक़ा बड़ी मुश्किल से हाथ आया था

 

दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'

09136211486

२४/०३/२०११.

Views: 322

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on March 24, 2011 at 4:37pm
शुक्रिया जनाब आपनें ठीक फ़रमाया साहब और इसी रचना में मैंने यह कबूल भी किया है....
दीपक कुल्लुवी

दुनियां कहती है ग़ज़ल लिखना नहीं आता मुझको
हमनें लिख डाला जो ज़हन में अपनें आया था
........

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on March 24, 2011 at 4:31pm
जनाब दीपक साहब ...सुन्दर अभिव्यक्ति है .पर इसे मुकम्मल गज़ल होने मे अभी कसर है|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service