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कई बार झूला हुं
सावन के झूले में
कई बार झूला हू
यादों के झूले में
और तेरी बाहों के झूले में भी
कई बार झूला हू मैं ॥

पर अब ये झूले
कोई गर्मी नहीं देती

कई झूले है
झूलने को अब मेरे पास
धर्म के झूले में झुलना
मेरी नियति है
बातों और वादों के
झूले में झुलना
हमारी दिनचर्या में है ॥
हमारे नेता हमें
झुलाते है ...रोलर -कोस्टर के
झूले में ॥
त्रिया -चरित के झूले में झुलना
एक रोज नए अनुभव से गुजरना है ॥

अफजल और कसाब
फांसी के झूले में कब झुलेगे
मुझे नहीं पता ॥
पर ......
हमारे विदर्भ के कई किसान
कपास की फसल बर्वाद होने के गम में
और .....
हरयाणा के खाप पंचायतों के
तुगलकी फरमानों से आजिज
कई युवक -युवतिया
ख़ुदकुशी के झूले में
झूलने को विवश हुए ॥

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 10, 2010 at 8:17pm
बबन भाई बहुत ही सही कहा है आपने, जिसको कभी का झूल जाना चाहिये था वो सरकारी सुरक्षा मे रोटिया तोड़ रहा है, और कुछ लोग रोटी ना मिलने के कारण झूल जेया रहे है, उधर हमारी ब्यवस्था के बदौलत भारत के प्रतिस्ठा को दाग लगा रहा है और ईधर कथित सामाजिक प्रतिश्ठा को बचाने के लिये मारे जा रहे है, बहुत ही सुंदर रचना है बबन भाई,
Comment by Admin on June 10, 2010 at 1:08pm
वाह बबन भाई वाह बहुत ही खूब कहा आपने,

हरयाणा के खाप पंचायतों के
तुगलकी फरमानों से आजिज
कई युवक -युवतिया
ख़ुदकुशी के झूले में
झूलने को विवश हुए ॥

झुलना और झेलना अब तो हमारे नियति मे शामिल हो गया है, बेजोड़ कविता है आपकी बहुत ही ऊँची सोच है, बहुत बहुत धन्यवाद इस खुबसूरत रचना के लिये,

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