For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आसमान को नापना ही होगा // कान्ता राॅय

जागी थी आज मै
चौंक उठी थी सहसा
कई कामों के संग ही
एक काम और रह गया

बहुत दिन हुए सोचे
आसमान नाप कर देखू
सुना है नील गगन
यह अति अनंत है
लेकिन अनंत में भी तो
छुपा हुआ होता एक अंत है

कहते है , किसी ने ना किया जो
मै बावरी भी ,ना करूं वो
छोड़ दू जिद
हो सकता है
कोई ना कर पाया जो
मै ही कर बैठू वो
क्यों बिना किये ऐसे छोड़ दू ,
अपने मंजिल का रास्ता मोड़ दू

उठा कर इंजी टेप मैने
पूरे होशोहवास में अपने
आसमान की ओर जो देखी
ये क्या !

मुझे तो बेहद सिमटी सी लगी
ये मेरी नजरों का धोखा हो
धोखा ही सही
उसका सिमटना मुझे भा गया

ऐसा लगा मानो
वो मुझे बुला रहा है
वो नील गगन
मुझे बुला रहा है

मै अब और ना ठहर पाई
पडोस से सीढ़ी उठा लाई
लगा दिया मैने आसमान में
और चढ़ बैठी

जा पहुँची चंदा तक
चंदा ने पूछा, तेरी बिंदिया कहाँ है ?
मैने कहा , उतार आई
बिंदिया भी , मंगलसूत्र भी
कहीं ये चमक जाती आसमान में !
कही ये उलझ जाती गरदन में !
मैने चुड़ी भी देखो उतार दी है
तारों की नजर ना पड़ जाये

आसमान को नापते हुए
पायल की छनछनाहट में
ध्यान टूट सकता है
आसमान की गिनती
इंची टेप नापने में
बहुत कुछ छूट सकता है


आसमान नापना हो जायेगा
मेरा लौटना भी हो जायेगा
पहन लूँगी सारे आभूषण
जो पिता ने रिश्तों में
जकड़ते हुए जड़ दिये थे मेरे अंगों में
सब पहन लूँगी
पहले यह काम तो कर लू
आसमान को जरा नाप लू

देखो मै नाप रही हूँ
नपते- नपते बढ़ रही हूँ
कितना सारा नापा है
और नापूँगी इसे
जब तक दम है
नापती ही रहूँगी

मेरे कदमों के निशां पर
चलने वालों के लिये
यह सिलसिला
देकर जाऊँगी
ये इंची टेप भी
दे जाऊँगी

मेरे मरने के बाद भी
आसमान नापने का
क्रम ना टूटे
यह अनवरत युँ ही
हाथों से हाथों तक
सदियों से सदियों तक
बढती रहे ,

वो भी अपनी
चुडी पायल बिछुए
बिंदी मंगलसूत्र
घर पर ही छोड़ जाये
आसमान को नापते वक्त
कोई उलझन ना होने पाये

देखना एक दिन
यह पूरा आसमान
नप जायेगा
मुझे यकीन हैै
एक दिन यह आसमान
नपा हुआ पाया जायेगा ।


कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 587

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on August 13, 2015 at 11:22am
आदरणीया बबिता जी आभार आपको ।
Comment by kanta roy on August 13, 2015 at 11:21am
आपको कविता अच्छी लगी ये मेरे लिए बेहद खुशी की बात हुई आदरणीय गिरीराज भंडारी जी । सादर नमन आपको ।
Comment by babita choubey shakti on July 27, 2015 at 9:11am
बहुत बहुत बहुत प्यारी रचना आ कांता रॉय जी बधाई स्वीकारे

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2015 at 11:57am

आदरणीया कांता जी , अच्छी लगी आपके कविता , आपको हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2015 at 11:56am

आदरणीया कांता जी , अच्छी लगी आपके कविता , आपको हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service